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चाय 3
चाय पी जाती है
धीरे-धीरे
घूँट-घूँट ,
जीवन की तरह –
पल-पल
हर दिन
भरपूर !
अंत में
थोड़ी रह जाती है
कप के तले में ,
जीवन में भी
रह ही जाता है
कुछ,
भूल जाने लायक !
-
नूपुर अशोक
विषय:
जीवन (37)
धीरे-धीरे (4)
काव्यालय को प्राप्त: 5 Aug 2022. काव्यालय पर प्रकाशित: 6 Aug 2023
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जब आप कुछ नहीं कर सकते
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दूर पहाड़ पर जलता दिया
..
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