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चाय 3
चाय पी जाती है
धीरे-धीरे
घूँट-घूँट ,
जीवन की तरह –
पल-पल
हर दिन
भरपूर !
अंत में
थोड़ी रह जाती है
कप के तले में ,
जीवन में भी
रह ही जाता है
कुछ,
भूल जाने लायक !
-
नूपुर अशोक
काव्यालय को प्राप्त: 5 Aug 2022. काव्यालय पर प्रकाशित: 6 Aug 2023
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'पुकार'
अनिता निहलानी
कोई कथा अनकही न रहे
व्यथा कोई अनसुनी न रहे,
जिसने कहना-सुनना चाहा
वाणी उसकी मुखर हो रहे!
एक प्रश्न जो सोया भीतर
एक जश्न भी खोया भीतर,
जिसने उसे जगाना चाहा
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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