चाय पी जाती है
धीरे-धीरे
घूँट-घूँट ,
जीवन की तरह –
पल-पल
हर दिन
भरपूर !
अंत में
थोड़ी रह जाती है
कप के तले में ,
जीवन में भी
रह ही जाता है
कुछ,
भूल जाने लायक !
लोक धूमिल रँग दिया अनुराग से,
मौन जीवन भर दिया मधु राग से,
दे दिया संसार सोने का सहज
जो मिला करता बड़े ही भाग से,
कौन तुम मधुमास-सी अमराइयाँ महका गयी हो!