अप्रतिम कविताएँ
कौन तुम मेरे हृदय में
       कौन तुम मेरे हृदय में?

कौन मेरी कसक में नित
       मधुरता भरता अलक्षित?
कौन प्यासे लोचनों में
       घुमड़ घिर झरता अपरिचित?
       स्वर्ण स्वप्नों का चितेरा
              नींद के सूने निलय में!
                     कौन तुम मेरे हृदय में?

अनुसरण निश्वास मेरे
       कर रहे किसका निरन्तर?
चूमने पदचिन्ह किसके
       लौटते यह श्वास फिर फिर?
       कौन बन्दी कर मुझे अब
              बँध गया अपनी विजय मे?
                     कौन तुम मेरे हृदय में?

एक करुण अभाव चिर -
       तृप्ति का संसार संचित,
एक लघु क्षण दे रहा
       निर्वाण के वरदान शत-शत;
       पा लिया मैंने किसे इस
              वेदना के मधुर क्रय में?
                     कौन तुम मेरे हृदय में?

गूंजता उर में न जाने
       दूर के संगीत-सा क्या!
आज खो निज को मुझे
       खोया मिला विपरीत-सा क्या!
       क्या नहा आई विरह-निशि
              मिलन-मधदिन के उदय में?
                     कौन तुम मेरे हृदय में?

तिमिर-पारावार में
       आलोक-प्रतिमा है अकम्पित;
आज ज्वाला से बरसता
       क्यों मधुर घनसार सुरभित?
       सुन रही हूँ एक ही
              झंकार जीवन में, प्रलय में?
                     कौन तुम मेरे हृदय में?

मूक सुख-दुख कर रहे
       मेरा नया श्रृंगार-सा क्या?
झूम गर्वित स्वर्ग देता -
       नत धरा को प्यार-सा क्या?
       आज पुलकित सृष्टि क्या
              करने चली अभिसार लय में?
                     कौन तुम मेरे हृदय में?
- महादेवी वर्मा
विषय:
प्रेम (60)

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'स्वतंत्रता का दीपक'
गोपालसिंह नेपाली


घोर अंधकार हो, चल रही बयार हो,
आज द्वार द्वार पर यह दिया बुझे नहीं।
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।

शक्ति का दिया हुआ, शक्ति को दिया हुआ,
भक्ति से दिया हुआ, यह स्वतंत्रता-दिया,
रुक रही न नाव हो, ज़ोर का बहाव हो,
आज गंगधार पर यह दिया बुझे नहीं!
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है!
..

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इस महीने :
'युद्ध की विभीषिका'
गजेन्द्र सिंह


युद्ध अगर अनिवार्य है सोचो समरांगण का क्या होगा?
ऐसे ही चलता रहा समर तो नई फसल का क्या होगा?

हर ओर धुएँ के बादल हैं, हर ओर आग ये फैली है।
बचपन की आँखें भयाक्रान्त, खण्डहर घर, धरती मैली है।
छाया नभ में काला पतझड़, खो गया कहाँ नीला मंजर?
झरनों का गाना था कल तक, पर आज मौत की रैली है।

किलकारी भरते ..

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इस महीने :
'नव ऊर्जा राग'
भावना सक्सैना


ना अब तलवारें, ना ढाल की बात है,
युद्ध स्मार्ट है, तकनीक की सौगात है।
ड्रोन गगन में, सिग्नल ज़मीन पर,
साइबर कमांड है अब सबसे ऊपर।

सुनो जवानों! ये डिजिटल रण है,
मस्तिष्क और मशीन का यह संगम है।
कोड हथियार है और डेटा ... ..

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