तुम मुझमें प्रिय! फिर परिचय क्या
तारक में छवि, प्राणों में स्मृति,
पलकों में नीरव पद की गति,
लघु उर में पुलकों की संसृति,
भर लाई हूँ तेरी चंचल
और करूँ जग में संचय क्या!
तेरा मुख सहास अरुणोदय,
परछाई रजनी विषादमय,
वह जागृति वह नींद स्वप्नमय,
खेलखेल थकथक सोने दे
मैं समझूँगी सृष्टि प्रलय क्या!
तेरा अधरविचुंबित प्याला
तेरी ही स्मितमिश्रित हाला,
तेरा ही मानस मधुशाला,
फिर पूछूँ क्या मेरे साकी!
देते हो मधुमय विषमय क्या?
रोमरोम में नंदन पुलकित,
साँससाँस में जीवन शतशत,
स्वप्न स्वप्न में विश्व अपरिचित,
मुझमें नित बनते मिटते प्रिय!
स्वर्ग मुझे क्या निष्क्रिय लय क्या?
हारूँ तो खोऊँ अपनापन
पाऊँ प्रियतम में निर्वासन,
जीत बनूँ तेरा ही बंधन
भर लाऊँ सीपी में सागर
प्रिय मेरी अब हार विजय क्या?
चित्रित तू मैं हूँ रेखाक्रम,
मधुर राग तू मैं स्वर संगम,
तू असीम मैं सीमा का भ्रम,
काया छाया में रहस्यमय।
प्रेयसि प्रियतम का अभिनय क्या
तुम मुझमें प्रिय! फिर परिचय क्या