अप्रतिम कविताएँ
चाय 6

सोचो ज़रा,
नापतोल कर
सही फॉर्मूले से
बनती है चाय
मशीन में,
पर हर बार
मशीन भूल जाती है
चाय में स्वाद डालना
या
चाय ही
नहीं भूल पाती
किसी की नज़रों के
अंदाज़ से गुज़रना !
- नूपुर अशोक
विषय:
गणित विज्ञान (8)
सहजता (8)

काव्यालय को प्राप्त: 5 Aug 2022. काव्यालय पर प्रकाशित: 9 Aug 2023

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'छाता '
प्रेमरंजन अनिमेष


जिनके सिर ढँकने के लिए
छतें होती हैं
वही रखते हैं छाते

हर बार सोचता हूँ
एक छत का जुगाड़ करुँगा
और लूँगा एक छाता

इस शहर के लोगों के पास
जो छाता है
उसमें

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'एक मनःस्थिति '
शान्ति मेहरोत्रा


कभी-कभी लगता है
जैसे घर की पक्की छत, दीवारें, चौखटें
मेरी गरम साँसों से पिघल कर
मोम-सी बह गई हैं।

केवल ये खिड़कियाँ-दरवाजे जैसे
कभी ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'खिलौने की चाबी'
नूपुर अशोक


इतनी बार भरी गई है
दुःख, तकलीफ और त्याग की चाबी
कि माँ बन चुकी है एक खिलौना
घूम रही है गोल-गोल
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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