अप्रतिम कविताएँ

खिड़की और किरण
हर रोज़ की तरह
रोशनी की किरण
आज भी भागती हुई आई
उस कमरे में फुदकने के लिए
मेज़ के टुकड़े करने के लिए
पलंग पर सो रहने के लिए

भागती हुई उस किरण ने देखा नहीं
बंद खिड़की को
जिससे टकरा कर
उसका खून
दीवार पर बहता हुआ
नीचे ज़मीन पर पसर गया।

उस मदहोश को कहाँ था पता
लू के मौसम में
खिड़कियाँ बंद कर दी जाती हैं।
- नूपुर अशोक
काव्यपाठ: नूपुर अशोक
विषय:
रोशनी (4)

काव्यालय को प्राप्त: 5 Aug 2024. काव्यालय पर प्रकाशित: 6 Sep 2024

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पटाखों के साथ-साथ
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सहमे से मुरझाए होठों पर
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