अप्रतिम कविताएँ
चाय 5

कभी किसी
और कभी
किसी और के नाम पर
दूर होते गए हैं हम
छोटी-छोटी खुशियों से,
इस चाय की तरह
जिसमें रह गई हैं
चाय के नाम पर
अब बस चंद पत्तियाँ,
चलो न,
वापस लौटें उसी भरपूर वक़्त में
और भर लें एक बार फिर
इस पानी-पानी जीवन में
अदरक जैसी तेज़ी
इलायची जैसी खुशबू
चीनी जैसी मिठास
और दूध जैसा प्यार !
- नूपुर अशोक

काव्यालय को प्राप्त: 5 Aug 2022. काव्यालय पर प्रकाशित: 8 Aug 2023

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'काल का वार्षिक विलास'
नाथूराम शर्मा 'शंकर'


सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।

छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'ओ माँ बयार'
शान्ति मेहरोत्रा


सूरज को, कच्ची नींद से
जगाओ मत।
दूध-मुँहे बालक-सा
दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
..

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इस महीने :
'आए दिन अलावों के'
इन्दिरा किसलय


आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

..

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