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जल कर दे
ईश्वर मुझको जल कर दे
सीमित कर सागर कर दे
मोड़े तू जिस ओर मुझे
चल दूँ दे जी-जान तुझे
चट्टानों से ढल कर के
निर्मल निर्झर सा कर दे
बहती जाऊं तेरी ओर
हर को लेकर अपनी ओर
पीड़ा मेरी हर कर के
वाणी मेरी सुन कर के
मंज़िल मेरी तय कर दे
ईश्वर मुझको जल कर दे
-
वाणी मुरारका
Vani Murarka
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छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 3 खास विषयों पर लिखना
वाणी मुरारका
इस महीने :
'कौन तुम'
डा. महेन्द्र भटनागर
कौन तुम अरुणिम उषा-सी मन-गगन पर छा गयी हो!
लोक धूमिल रँग दिया अनुराग से,
मौन जीवन भर दिया मधु राग से,
दे दिया संसार सोने का सहज
जो मिला करता बड़े ही भाग से,
कौन तुम मधुमास-सी अमराइयाँ महका गयी हो!
वीथियाँ सूने हृदय की ..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 2 मूल तरकीब
वाणी मुरारका
छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 1 लय का महत्व
वाणी मुरारका
इस महीने :
'कामायनी ('निर्वेद' सर्ग के कुछ छंद)'
जयशंकर प्रसाद
तुमुल कोलाहल कलह में
मैं हृदय की बात रे मन!
विकल होकर नित्य चंचल,
खोजती जब नींद के पल,
चेतना थक-सी रही तब,
मैं मलय की वात रे मन!
चिर-विषाद-विलीन मन की,
इस व्यथा के तिमिर-वन की;
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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