अप्रतिम कविताएँ
जल कर दे
ईश्वर मुझको जल कर दे
सीमित कर सागर कर दे

मोड़े तू जिस ओर मुझे
चल दूँ दे जी-जान तुझे

चट्टानों से ढल कर के
निर्मल निर्झर सा कर दे

बहती जाऊं तेरी ओर
हर को लेकर अपनी ओर

पीड़ा मेरी हर कर के
वाणी मेरी सुन कर के

मंज़िल मेरी तय कर दे
ईश्वर मुझको जल कर दे
- वाणी मुरारका
Vani Murarka
[email protected]
विषय:
भक्ति और प्रार्थना (30)
सहजता (8)

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जिनके सिर ढँकने के लिए
छतें होती हैं
वही रखते हैं छाते

हर बार सोचता हूँ
एक छत का जुगाड़ करुँगा
और लूँगा एक छाता

इस शहर के लोगों के पास
जो छाता है
उसमें

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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कभी-कभी लगता है
जैसे घर की पक्की छत, दीवारें, चौखटें
मेरी गरम साँसों से पिघल कर
मोम-सी बह गई हैं।

केवल ये खिड़कियाँ-दरवाजे जैसे
कभी ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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इतनी बार भरी गई है
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कि माँ बन चुकी है एक खिलौना
घूम रही है गोल-गोल
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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