अप्रतिम कविताएँ

चुप सी लगी है
चुप सी लगी है।
अन्दर ज़ोर
एक आवाज़ दबी है।
वह दबी चीख
निकलेगी कब?
ज़िन्दगी आखिर
शुरू होगी कब?
कब?

खुले मन से हंसी
कब आएगी?
इस दिल में खुशी
कब खिलखिलाएगी?
बरसों इस जाल में बंधी,
प्यास अभी भी है।
अपने पथ पर चल पाऊँगी,
आस अभी भी है।
पर इंतज़ार में
दिल धीरे धीरे मरता है
धीरे धीरे पिसता है मन,
शेष क्या रहता है?

डर है, एक दिन
यह धीरज न टूट जाए
रोको न मुझे,
कहीं ज्वालामुखी फूट जाए।
वह फूटा तो
इस श्री सृजन को
कैसे बचाऊँगी?
विश्व में मात्र एक
किस्सा बन रह जाऊँगी।
- वाणी मुरारका
Vani Murarka
[email protected]

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इस महीने :
'या देवी...'
उपमा ऋचा


1
सृष्टि की अतल आंखों में
फिर उतरा है शक्ति का अनंत राग
धूम्र गंध के आवक स्वप्न रचती
फिर लौट आई है देवी
रंग और ध्वनि का निरंजन नाद बनकर
लेकिन अभी टूटी नहीं है धरती की नींद
इसलिए जागेगी देवी अहोरात्र...

2
पूरब में शुरू होते ही
दिन का अनुष्ठान
जाग उठी हैं सैकड़ों देवियाँ
एक-साथ
ये देवियाँ जानती हैं कि
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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