अप्रतिम कविताएँ
विस्मृति की लहरें
विस्मृति की लहरें
ऊँची उठ रही हैं
इति की यह तटिनी
बाढ़ पर है अब

ढह रही हैं मन से घटनाएँ
छोटी-बड़ी यादें और चेहरे
जिनका मैं सब-कुछ जानता था
जिन्हें मैं लगभग पर्याय मानता था
अपने होने का

सब किनारे के वृक्षों की तरह
गिर-गिरकर बहते जा रहे हैं
मेरी इति की धार में
दूर-दूर से व्यक्ति-वृक्ष
आ रहे हैं और
मैं उन्हें हल्का-हल्का
पहचान रहा हूँ

जान रहा हूँ बीच-बीच में
कि इति की तटिनी
बाढ़ पर है
ऊँची उठ रही हैं
विस्मृति की लहरें !
- भवानीप्रसाद मिश्र
विस्मृति : भूल जाना; इति : समाप्ति, पूर्णता; तटिनी : नदी, सरिता

साहित्य अकादेमी पुरस्कृत संकलन "बुनी हुई रस्सी" से

एमज़ोन पर उपलब्ध
विषय:
मृत्यु (9)

काव्यालय पर प्रकाशित: 7 Jun 2019

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
भवानीप्रसाद मिश्र
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ

 अक्कड़ मक्कड़
 अच्छा अनुभव
 आराम से भाई जिन्दगी
 एक बहुत ही तन्मय चुप्पी
 कुछ नहीं हिला उस दिन
 चिकने लम्बे केश
 जबड़े जीभ और दाँत
 परिवर्तन जिए
 विस्मृति की लहरें
 सतपुड़ा के घने जंगल
इस महीने :
'हमारी सहयात्रा'
ज्योत्सना मिश्रा


कभी-कभी जीवन कोई घोषणा नहीं करता—
वह बस बहता है,
जैसे कोई पुराना राग,
धीरे-धीरे आत्मा में उतरता हुआ,
बिना शोर, बिना आग्रह।

हमारे साथ के तीस वर्ष पूर्ण हुए हैं।
कभी लगता है हमने समय को जिया,
कभी लगता है समय ने हमें तराशा।
यह साथ केवल वर्ष नहीं थे—
यह दो आत्माओं का मौन संवाद था,
जो शब्दों से परे,
पर भावों से भरपूर रहा।

जब हमने साथ चलना शुरू किया,
तुम थे स्वप्नद्रष्टा—
शब्दों के जादूगर,
भविष्य के रंगीन रेखाचित्रों में डूबे हुए।
और मैं…
मैं थी वह ज़मीन
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'तुम तो पहले ऐसे ना थे'
सत्या मिश्रा


तुम तो पहले ऐसे न थे
रात बिरात आओगे
देर सवेर आओगे
हम नींद में रहें
आँख ना खुले
तो रूठ जाओगे...

स्वप्न में आओगे
दिवास्वप्न दिखाओगे
हम कलम उठाएँगे
तो छिप जाओगे...

बेचैनियों का कभी
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'कुछ प्रेम कविताएँ'
प्रदीप शुक्ला


1.
प्रेम कविता, कहानियाँ और फ़िल्में
जहाँ तक ले जा सकती हैं
मैं गया हूँ उसके पार
कई बार।
इक अजीब-सी बेचैनी होती है वहाँ
जी करता है थाम लूँ कोई चीज
कोई हाथ, कोई सहारा।
मैं टिक नहीं पाता वहाँ देर तक।।

सुनो,
अबसे
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website