एक बहुत ही तन्मय चुप्पी
एक बहुत ही तन्मय चुप्पी ऐसी
जो माँ की छाती में लगाकर मुँह
चूसती रहती है दूध
मुझसे चिपककर पड़ी है
और लगता है मुझे
यह मेरे जीवन की
लगभग सबसे निविड़ ऐसी घड़ी है
जब मैं दे पा रहा हूँ
स्वाभाविक और सुख के साथ अपने को
किसी अनोखे ऐसे सपने को
जो अभी-अभी पैदा हुआ है
और जो पी रहा है मुझे
अपने साथ-साथ
जो जी रहा है मुझे!
काव्यालय पर प्रकाशित: 4 Mar 2022
इस महीने :
'हमारी सहयात्रा'
ज्योत्सना मिश्रा
कभी-कभी जीवन कोई घोषणा नहीं करता—
वह बस बहता है,
जैसे कोई पुराना राग,
धीरे-धीरे आत्मा में उतरता हुआ,
बिना शोर, बिना आग्रह।
हमारे साथ के तीस वर्ष पूर्ण हुए हैं।
कभी लगता है हमने समय को जिया,
कभी लगता है समय ने हमें तराशा।
यह साथ केवल वर्ष नहीं थे—
यह दो आत्माओं का मौन संवाद था,
जो शब्दों से परे,
पर भावों से भरपूर रहा।
जब हमने साथ चलना शुरू किया,
तुम थे स्वप्नद्रष्टा—
शब्दों के जादूगर,
भविष्य के रंगीन रेखाचित्रों में डूबे हुए।
और मैं…
मैं थी वह ज़मीन
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