अप्रतिम कविताएँ
सुन सुलक्षणा
प्रभु की किरपा -
सुन सुलक्षणा
इस अंतिम बेला में तुम हो संग हमारे

बर्फ़-हुई इस देह धरे के ताप संग हैं हमने भोगे
पुरे हमारे सारे सपने जो थे हमने, सजनी, जोगे

हिरदय अक्सर
गीत हुआ था
दिन कोमल गांधार रहे थे संग तुम्हारे

आदिम छुवन पर्व की यादें हमको रह-रह टेर रही हैं
यौवन की मीठी फुहार को थकी झुर्रियाँ हेर रही हैं

कामदेव के
मंत्र हो गये
बोल सभी वे जो थे हमनें संग उचारे

पतझर हुईं हमारी साँसें, भीतर फिर भी रितु फागुन की
रास हो रहा है यह दिन भी - गूँज आ रही वंशीधुन की

नदीघाट पर
कहीं बज रही
है शहनाई - महाकाल का पर्व गुहारे
- कुमार रवीन्द्र

काव्यालय पर प्रकाशित: 25 Jan 2019

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कुमार रवीन्द्र
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छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 3 खास विषयों पर लिखना

वाणी मुरारका
इस महीने :
'कौन तुम'
डा. महेन्द्र भटनागर


कौन तुम अरुणिम उषा-सी मन-गगन पर छा गयी हो!

              लोक धूमिल रँग दिया अनुराग से,
              मौन जीवन भर दिया मधु राग से,
              दे दिया संसार सोने का सहज
              जो मिला करता बड़े ही भाग से,
कौन तुम मधुमास-सी अमराइयाँ महका गयी हो!

             वीथियाँ सूने हृदय की ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...

छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 2 मूल तरकीब

वाणी मुरारका

छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 1 लय का महत्व

वाणी मुरारका
इस महीने :
'कामायनी ('निर्वेद' सर्ग के कुछ छंद)'
जयशंकर प्रसाद


तुमुल कोलाहल कलह में
मैं हृदय की बात रे मन!

विकल होकर नित्य चंचल,
खोजती जब नींद के पल,
चेतना थक-सी रही तब,
मैं मलय की वात रे मन!

चिर-विषाद-विलीन मन की,
इस व्यथा के तिमिर-वन की;
..

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