अप्रतिम कविताएँ
सुन सुलक्षणा
प्रभु की किरपा -
सुन सुलक्षणा
इस अंतिम बेला में तुम हो संग हमारे

बर्फ़-हुई इस देह धरे के ताप संग हैं हमने भोगे
पुरे हमारे सारे सपने जो थे हमने, सजनी, जोगे

हिरदय अक्सर
गीत हुआ था
दिन कोमल गांधार रहे थे संग तुम्हारे

आदिम छुवन पर्व की यादें हमको रह-रह टेर रही हैं
यौवन की मीठी फुहार को थकी झुर्रियाँ हेर रही हैं

कामदेव के
मंत्र हो गये
बोल सभी वे जो थे हमनें संग उचारे

पतझर हुईं हमारी साँसें, भीतर फिर भी रितु फागुन की
रास हो रहा है यह दिन भी - गूँज आ रही वंशीधुन की

नदीघाट पर
कहीं बज रही
है शहनाई - महाकाल का पर्व गुहारे
- कुमार रवीन्द्र
विषय:
जीवन (37)
प्रेम (62)
विवाह (8)
बुढ़ापा बीमारी (9)

काव्यालय पर प्रकाशित: 25 Jan 2019

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इस महीने :
'हमारी सहयात्रा'
ज्योत्सना मिश्रा


कभी-कभी जीवन कोई घोषणा नहीं करता—
वह बस बहता है,
जैसे कोई पुराना राग,
धीरे-धीरे आत्मा में उतरता हुआ,
बिना शोर, बिना आग्रह।

हमारे साथ के तीस वर्ष पूर्ण हुए हैं।
कभी लगता है हमने समय को जिया,
कभी लगता है समय ने हमें तराशा।
यह साथ केवल वर्ष नहीं थे—
यह दो आत्माओं का मौन संवाद था,
जो शब्दों से परे,
पर भावों से भरपूर रहा।

जब हमने साथ चलना शुरू किया,
तुम थे स्वप्नद्रष्टा—
शब्दों के जादूगर,
भविष्य के रंगीन रेखाचित्रों में डूबे हुए।
और मैं…
मैं थी वह ज़मीन
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'तुम तो पहले ऐसे ना थे'
सत्या मिश्रा


तुम तो पहले ऐसे न थे
रात बिरात आओगे
देर सवेर आओगे
हम नींद में रहें
आँख ना खुले
तो रूठ जाओगे...

स्वप्न में आओगे
दिवास्वप्न दिखाओगे
हम कलम उठाएँगे
तो छिप जाओगे...

बेचैनियों का कभी
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'कुछ प्रेम कविताएँ'
प्रदीप शुक्ला


1.
प्रेम कविता, कहानियाँ और फ़िल्में
जहाँ तक ले जा सकती हैं
मैं गया हूँ उसके पार
कई बार।
इक अजीब-सी बेचैनी होती है वहाँ
जी करता है थाम लूँ कोई चीज
कोई हाथ, कोई सहारा।
मैं टिक नहीं पाता वहाँ देर तक।।

सुनो,
अबसे
..

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