अप्रतिम कविताएँ
अभी होने दो समय को
अभी होने दो
समय को
गीत फिर कुछ और

वक्त के बूढ़े कैलेंडर को
हटा दो
नया टाँगों
वर्ष की पहली सुबह से
बाँसुरी की धुनें माँगो

सुनो निश्चित
आम्रवन में
आएगा फिर बौर

बर्फ की घटनाएँ
थोड़ी देर की हैं
धूप होंगी
खुशबुओं के टापुओं पर
टिकेगी फिर परी-डोंगी

साँस की
यात्राओं को दो
वेणुवन की ठौर

अभी बाकी
है अलौकिकता
हमारे शंख में भी
और बाकी हैं उड़ानें
सुनो, बूढ़े पंख में भी

इन थकी
पिछली लयों पर भी
करो तुम गौर
- कुमार रवीन्द्र

काव्यालय को प्राप्त: 6 Jan 2017. काव्यालय पर प्रकाशित: 21 Dec 2017

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इस महीने :
'पिता: वह क्यों नहीं रुके'
ब्रज श्रीवास्तव


मेरे लिए, मेरे पिता
तुम्हारे लिए, तुम्हारे पिता जैसे नहीं हैं,

एकांत की खोह में जब जाता हूँ
बिल्कुल, बिल्कुल करीब हो जाता हूँ
अपने ही
तब भी
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...


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