Toggle navigation
English Interface
संग्रह से कोई भी रचना
काव्य विभाग
शिलाधार
युगवाणी
नव-कुसुम
काव्य-सेतु
मुक्तक
प्रतिध्वनि
काव्य लेख
सहयोग दें
अप्रतिम कविताएँ
प्राप्त करें
✉
अप्रतिम कविताएँ
प्राप्त करें
✉
काश हम पगडंडियाँ होते
यों न होते
काश !
हम पगडंडियाँ होते
इधर जंगल - उधर जंगल
बीच में हम साँस लेते
नदी जब होती अकेली
उसे भी हम साथ देते
कभी उसकी
देह छूते
कभी अपने पाँव धोते
कोई परबतिया
इधर से जब गुज़रती
घुघरुओं की झनक
भीतर तक उतरती
हम
उसी झंकार को
आदिम गुफाओं में सँजोते
और-भी पगडंडियों से
उमग कर हम गले मिलते
तितलियों के संग उड़ते
कोंपलों के संग खिलते
देखते हम
कहाँ जाती है गिलहरी
कहाँ बसते रात तोते
-
कुमार रवीन्द्र
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सौन्दर्य और सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।
₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
कुमार रवीन्द्र
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ
अभी होने दो समय को
काश हम पगडंडियाँ होते
तैर रहा इतिहास नदी में
बक्सों में यादें
मित्र सहेजो
सुन सुलक्षणा
हर मकान बूढ़ा होता
छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 3 खास विषयों पर लिखना
वाणी मुरारका
इस महीने :
'कौन तुम'
डा. महेन्द्र भटनागर
कौन तुम अरुणिम उषा-सी मन-गगन पर छा गयी हो!
लोक धूमिल रँग दिया अनुराग से,
मौन जीवन भर दिया मधु राग से,
दे दिया संसार सोने का सहज
जो मिला करता बड़े ही भाग से,
कौन तुम मधुमास-सी अमराइयाँ महका गयी हो!
वीथियाँ सूने हृदय की ..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 2 मूल तरकीब
वाणी मुरारका
छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 1 लय का महत्व
वाणी मुरारका
इस महीने :
'कामायनी ('निर्वेद' सर्ग के कुछ छंद)'
जयशंकर प्रसाद
तुमुल कोलाहल कलह में
मैं हृदय की बात रे मन!
विकल होकर नित्य चंचल,
खोजती जब नींद के पल,
चेतना थक-सी रही तब,
मैं मलय की वात रे मन!
चिर-विषाद-विलीन मन की,
इस व्यथा के तिमिर-वन की;
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना
| काव्य विभाग:
शिलाधार
युगवाणी
नव-कुसुम
काव्य-सेतु
|
प्रतिध्वनि
|
काव्य लेख
सम्पर्क करें
|
हमारा परिचय
सहयोग दें