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पावन कर दो
आ पवस्व मन्दितम पवित्रं धारया कवे ।
अर्कस्य योनिमासदम् ।।
(ऋ. 9/50/4)
कवि! मेरा मन पावन कर दो!
हे! रसधार
बहाने वाले,
हे! आनन्द
लुटाने वाले,
ज्योतिपुंज मैं भी हो जाऊँ
ऐसा अपना तेज प्रखर दो!
- अज्ञात
- अनुवाद :
अमृत खरे
पुस्तक
"मयूरपंख: गीत संग्रह (अमृत खरे)"
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