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पावन कर दो
कवि! मेरा मन पावन कर दो!
हे! रसधार
बहाने वाले,
हे! आनन्द
लुटाने वाले,
ज्योतिपुंज मैं भी हो जाऊँ
ऐसा अपना तेज प्रखर दो!
(ऋग्वेद - मंत्र ९/५०/४ से अनुप्रेरित)
-
अमृत खरे
पुस्तक
"मयूरपंख: गीत संग्रह (अमृत खरे)" से
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कुमार रवीन्द्र
साधो, सच है
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धीरे-धीरे हर मकान भी बूढ़ा होता
देह घरों की थक जाती है
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वह भी हो जाता है खारा
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जो देवा बसता है
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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'अधूरी'
प्रिया एन. अइयर
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..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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