अन्धतमः प्र विशन्ति येऽविद्यामुपासते ।
ततो भूयऽइव ते तमो यऽउ विद्यायां रताः ।।
(यजु 40/12)
मात्र अविद्या की उपासना जो करते हैं,
घनान्धतम में वे प्रवेश करते रहते हैं।
उनसे अधिक अंधेरे, उनको घेरे रहते,
उपासना विद्या की केवल जो करते हैं !
अन्यदेवाहुर्विद्यायाऽ अन्यदाहुरविद्यायाः।
इति शुश्रुम धीराणां ये नस्तद्विचचाक्षिरे।।
(यजु 49/13)
विद्या और अविद्या पथ के श्रेय भिन्न हैं,
कर्म भिन्न, परिणाम भिन्न हैं, प्रेय भिन्न हैं।
इतना ही हम धीरों से सुनते आये हैं,
तरह-तरह से वह यह ही कहते आये हैं!
काव्यालय को प्राप्त: 25 Sep 2023.
काव्यालय पर प्रकाशित: 8 Dec 2023