कः स्विदेकाकी चरति कऽउ स्विज्जायते पुनः ।
किं स्विद्धिमस्य भेषजं किम्वावपनं महत् ।।
सूर्य्यऽ एकाकी चरति चन्द्रमा जायते पुनः ।
अग्निर्हिमस्य भेषजं भूमिरावपनं महत् ।।
(यजु. 23/45 व 46)
कौन एकाकी विचरता?
कौन फिर-फिर जन्मता है?
शीत की औषधि भला क्या ?
बीज-रोपण के लिये, बोलो,
वृहत आधार क्या है?
सूर्य एकाकी विचरता,
चन्द्र फिर-फिर जन्मता है,
शीत की है अग्नि औषधि,
बीज-रोपण के लिये, देखो,
वृहत उर्वर धरा है !
काव्यालय को प्राप्त: 25 Sep 2023.
काव्यालय पर प्रकाशित: 24 Nov 2023