धीरे-धीरे रस लेकर
"समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न" की पहली 21 कविताओं पर प्रतिक्रिया

अनिता निहलानी

"कविता को रस लेकर धीरे-धीरे ही पढ़ना चाहिए," अनिता निहलानी। वह स्वयं कवयित्री, लेखिका, योग शिक्षिका हैं। उन्होंने विनोद तिवारी का काव्य संकलन "समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न" का रसास्वादन किया।

एक दिन में बस एक ही कविता पढ़ीं। जैसे जैसे पढ़ती गईं, पुस्तक के प्रथम भाग "एक एहसास है उम्र भर के लिए" की हर एक कविता पर अपनी प्रतिक्रिया भेजती गईं। उनके साथ हमने भी एक प्यारा सफर तय किया।

चित्र वाणी मुरारका के हैं। पुस्तक में से लिए गए हैं। "समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न" का ई-बुक काव्यालय पर और एमज़ोन किन्डल (भारत और अन्तर्राष्ट्रिय) पर उपलब्ध है।

1. "जीवन दर्शन" 1 मई 2020 'समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न' की इतनी सुंदर समीक्षा पढ़कर मन अभिभूत है, पुस्तक पढ़ने का ख्याल तो मन में था ही पर किन्हीं व्यस्तताओं के कारण अभी तक भूमिका से आगे नहीं बढ़ी थी. आज पूरी पुस्तक का इतना विस्तृत विवरण पढ़कर 'जीवन दर्शन' पढ़ा, सब कुछ स्वीकार हो जिसे उसे कोई भी व्यथित नहीं कर पाता, न कोई वस्तु, न व्यक्ति न घटना, और जीवन से विदा लें उससे पूर्व यह सबक जो सीख लेता है वही उस परम् सत्य की झलक पा सकता है. आज इतना ही. सुंदर चित्रों से सजी यह अनुपम कृति जैसे-जैसे आगे पढूँगी, प्रतिक्रिया सहेज कर भेजूँगी। आदरणीय विनोद जी को बहुत बहुत बधाई!

2. 'मेरी कविता' 3 मई 2020 अभी-अभी 'मेरी कविता' पढ़ी, कवि की कल्पना के साथ-साथ जैसे पाठक का हृदय भी कोमलतम भावों से भर उस आद्रता को महसूस करता है जिसे कवि कभी आँसू, कभी गंगा और कभी वर्षा की बूंद के द्वारा जीवन के मरुथल में सदा पाना चाहता है. वह अनंत की चाह रखता है पर सीमाओं के यथार्थ से भी परिचित है, अपनी कल्पना में धरा को गगन की ऊँचाई तक ले जाते हुए भी वह उसे प्रकाश का संवाहक ही बनाना चाहता है. कवि अपने काव्य द्वारा लोकरंजक ही नहीं लोककल्याण की भावना को प्रश्रय देते हुए आगे बढ़ना चाहता है.

3. ‘ऐसी लगती हो’ 4 मई 2020 आज की कविता है, ‘ऐसी लगती हो’, प्रकृति देवी की आराधना करता हुआ कवि उसके भिन्न-भिन्न रूपों की कल्पना करता हुआ स्वयं को उसके प्रति खिंचा हुआ महसूस करता है. प्रकृति शाश्वत है, अनंत है, नित सृजन करती है, सौंदर्य की प्रतिमा है. जीवन को कलाओं से पूर्णता प्रदान करने वाली देवी भी वही है. उसके प्रति श्रद्धा का भाव जगाती है यह कविता किंतु उसे स्वयं से दूर किसी वेदी पर खड़ा करके नहीं, उसे अपने हृदय के समीप अनुभव करके.

4. ‘प्यार का नाता हमारा’ 7 मई 2020 ‘प्यार का नाता हमारा’ - प्यार के नाते कितने अनोखे होते हैं, जीवन के सूनेपन को भरने वाले और सदा सुखमय भविष्य की ओर प्रेरित करने वाले. कवि ने अपने ह्रदय की मल्लिका को कितनी ऊँचाइयों पर बैठाया है उसे प्रकृति की हर सुंदर वस्तु में वही नजर आती है. कवि के गीत भी उसी के लिए हैं और उसके हृदय की मंगल कामनाएं भी. कविता पढ़कर अंतर में विशुद्ध प्रेम की झलक महसूस होती है. ऐसा प्रेम जो जीवन में बसन्त बन कर आता है जिसमें स्वार्थ का लेशमात्र भी नहीं है.

5. ‘प्यार का उपहार ले लो’ 8 मई 2020 प्रेम देना चाहता है, वह बंटना चाहता है, प्रेम को बंधन पसंद नहीं, वह असीम तत्व है और कैसा विरोधाभास है कि प्रेम किसी एक को चाहता है, उस पर अपना सब कुछ लुटाना चाहता है. एक से अनेक और फिर अनेक से एक होने का राज प्रेम में ही छिपा है. ‘प्यार का उपहार ले लो’ कविता में कवि अपनी प्रेयसी को सारा संसार देना चाहता है. वह अपने प्रेम को स्वाति की रसधार जैसा अनमोल मानता है. वह ऐसे प्रेम का गीत गाता है जो उसके चिरकालीन स्वप्न को साकार करने वाला है.

6. ‘मधुर मधुर मुस्कान’ 9 मई 2020 मन का मीत जब बादलों के संग बरसने का सामर्थ्य रखता हो और सारा आकाश उसका विस्तार हो तो उसकी मुस्कान क्यों न मधुरतम होगी. जिसका गीत शाश्वत हो और जो सृजन का देवता हो, उसे ही तो स्वप्न और सत्य का चितेरा कहा जा सकता है. उसके प्रति ही समर्पण-भाव भी जगता है. ‘मधुर मधुर मुस्कान’ पढ़कर पता नहीं क्यों कृष्ण का स्मरण होता रहा.

7. ‘दास्ताने -इश्क’ 10 मई 2020 दास्ताने -इश्क - चाँद को चांदनी से पूछना पड़ा, वह कहाँ से आयी है, ऐसे ही मानव अपनी ही शक्ति से अनजान बना फिरता है, फिर एक दिन उसकी ही आत्मशक्ति उसे भरोसा दिलाती है और मानव को राह मिल जाती है. शिव से शक्ति का मिलन हुए बिना शिव भी अधूरे हैं. कवि ने इस सत्य को यहां उदघाटित किया है, ऐसा लगता है.

8. ‘बिखरते नाते’ 11 मई 2020 ‘बिखरते नाते’- जीवन द्वंद्वों का दूसरा नाम है, यहाँ दिन के साथ रात है और सुख के साथ दुःख है इसी तरह मिलन के साथ विरह भी है. कहते हैं कृष्ण यदि प्रेम है तो राधा विरह है. जिसने प्रेम में विरह का स्वाद नहीं चखा तो वह प्रेम की सम्पूर्णता को जान ही नहीं सकता. अब चैन नहीं है, क्योंकि चाँद भी गगन में कुम्हला गया है, चाँदनी जो कभी सुख देती थी अब सिमट गयी है, हृदय में विश्वास नहीं रहा, किन्तु कवि के मन में कोई द्वेष नहीं है, वह अपने हृदय की करुण दशा व्यक्त मात्र कर रहा है. उसे लगता है यही कहानी का अंत है. कवि पाठक के उर में संवेदना जगाने में सफल हुआ है.

9. ‘मुखौटे’ 12 मई 2020 जीवन की एक गहरी समझ जगाती है ‘मुखौटे’ कविता, जिसका कोई नाम नहीं है, वह तो भीतर है, नाम तो देह का है, नाम बदल भी सकता है, पर अपने नाम के प्रति कैसा मोह हमें हो जाता है. नाम के लिए लोग कितना कष्ट भी सहते हैं. सीमित होकर भी वह असीम जैसा नजर आता है, यही तो माया है. योग्यता, पद, धन, यश ये सभी नाम का ही प्रतीक हैं, इन के पीछे जाता हुआ मानव अपने सच्चे स्वरूप को जान ही नहीं पाता. देखा जाये तो जगत में मुखौटे ही मुखौटों से मिलते हैं, वास्तविक मानवों का मेल तो हो ही नहीं पाता।

10. ‘दर्द के दायरे’ 13 मई 2020 ‘दर्द के दायरे’- बुद्ध ने कहा है, जीवन दुःख है, पर भीतर मन की गहराई में एक सतह ऐसी है जहाँ कुछ भी नहीं है, एक गहन शांति है, हर दर्द उस शांति की तलाश है. क्योंकि दर्द कोई नहीं चाहता, अतीत में पाए सुख के लम्हों में कवि उसका उपाय खोजता है और पल भर को जीवन की डोलती नैया को जैसे आधार मिल जाता है.

11. ‘वेदना गीत’ 14 मई 2020 ‘वेदना गीत’ में कवि ने अतृप्त आकांक्षाओं से उपजी पीड़ा के कारण जीवन में उतरे सूनेपन को शब्द दिए हैं. जिस मिलन की उसे प्रतीक्षा थी, वह न घटा, उसकी प्यास अधूरी ही रह गयी है. किन्तु वेदना के इन स्वरों में भी उसकी चेतना जागृत है, वह चाहता है कि यह पीड़ा मृगमरीचिका ही सिद्ध हो, क्योंकि हर चाह सीमित है, उसका परिणाम भी सीमित ही होगा, यह जानते हुए वह उनके पूर्ण न हो पाने के दुःख से स्वयं को बचा भी लेता है. साथ ही इस पीड़ा को ही वह अपनी प्रेरणा भी बनाना चाहता है. वास्तव में हर सृजन पीड़ा की कोख से ही जन्मता है.

12. ‘मैं जिन्दा रहूँगा’ 15 मई 2020 कहते हैं दर्द जब हद से गुजर जाता है तो दवा बन जाता है. ‘मैं जिन्दा रहूँगा’ में कवि ने पीड़ा और दर्द से बचने का हर प्रयत्न त्याग दिया है, वह हिम्मत से उनका सामना करने को तत्पर है. वह दुःख को उसकी आखिरी सीमा तक महसूस करके उसके पार निकल जाने का हौसला पा चुका है। हिमालय जितने विराट अहंकार को भी जो डुबा दे सागर की उस गहराई का अनुभव उसने कर लिया है और अब मौत भी उसे भयभीत नहीं कर सकती. जिन कड़वाहटों के बल पर वह जिंदा रहना चाहता है वास्तव में उन्हें उसने जीवनी शक्ति में परिणत कर दिया है.

13. ‘कोलाहल’ 16 मई 2020 हिमालय भी डूब जाते हैं सागर में, कि सागर इतना विशाल है, पर सागर भी द्रवित हो उठता है हिमालय की पीड़ा से, कितनी अद्भुत कल्पना है ‘कोलाहल’ कविता में. माना कवि का मानस एक शांत सरवर की तरह है और उसने अपनी हिमालयी पीड़ा को डुबो दिया है, किन्तु उसमें हलचल मचाने के लिए कोई भूली बिसरी याद की एक कंकरी ही काफी है. उस बीते प्रेम की मधुर स्मृति के साक्षी हैं सागर के जल की तरह खारे उसके नेत्रों के अश्रु. प्रेम की पराकाष्ठा यह है कि उस स्मृति को वह जिस अंतर में सँजो कर रखना चाहता है, वह भी उसका नहीं रहा, उस पर तो प्रियतम का अधिकार हो चुका है .

14. ‘मेरे सपनों’ 17 मई 2020 ‘मेरे सपनों’ कविता में सपनों की हकीकत को कवि ने अति ही मनोहारी रूप में प्रस्तुत किया है, सच है कि नींद में और कभी-कभी जागते हुए भी जिन्हें हम देखते हैं वे सपने हमारे अतीत की ही छाया हैं, वे परिवर्तन का वादा तो करते हैं पर जिंदगी में कभी बदलाव लाते नहीं, क्योंकि वे तो मात्र सपने ही हैं न... आखिर उनसे उम्मीद भी क्या की जाये!

15. ‘मेरे मधुवन’ 18 मई 2020 जीवन में प्रेम का पदार्पण मानो मधुऋतु का आगमन, मन जब प्रेम के रस में डूबा हुआ हो तो चारों ओर बसंत ही तो छाने लगता है. मन में उमंग और हृदय में तरंग हिलोरें लेती है, लेकिन रूढ़िगत समाज रूपी पतझर से ये ख़ुशी देखी नहीं जाती और देखते-ही देखते सारा आलम उदासी के आवरण में ढक जाता है. कवि का कोमल अंतर अपने हृदय पर हुए इस आघात को सहन नहीं कर पाता किन्तु उस वसंत की मधुर स्मृति को दिल में बसाये वह परिवर्तन रूपी सावन की राह देखता है, समय के साथ पुरातनपंथी परंपराएं टूटेंगी और नया सृजन होगा, उस दिन उसका मधुवन पुनः पल्लवित होगा, ऐसी कामना उसके हृदय से प्रकटती है. नव आशा का संचार करती ये कविता ‘मेरे मधुवन’ पढ़ते समय एक कथा का सा रस देती है.

16. ‘आग़ाज नहीं अंजाम नहीं’ 19 मई 2020 आग़ाज नहीं, अंजाम नहीं, कविता पढ़कर एक फकीरी का सा भाव दिल में उमगता है. एक राही जिसे न मंजिल की परवाह है न ही उस दिन की याद है, जब उसकी यात्रा का आरंभ हुआ था, वह तो दिल में एक उमंग भरे रस्ते की चाह मन में भरे चल रहा है. कोई ऐसा अनुभव घटा जिसकी स्मृति ने उसके सारे अस्तित्त्व को डुबो दिया और अब दुनिया की कोई हलचल उसे हिला नहीं पाती. जीवन उसके लिए अब कुछ पाने की जद्दोजहद नहीं है बल्कि एक खुशनुमा अहसास बन गया है. जैसे भक्त यदि भगवान को चाहे तो भक्ति की रसधार उसे ही भिगोती है, भगवान तो जैसा है वैसा ही रहता है.

17. ‘यादगारों के साये’ 20 मई 2020 ‘यादगारों के साये’ में कवि जैसे एक बीते हुए पल में जी रहा है, प्रियतम जब साथ था, तब हर शै हसीन थी, अब उसी की याद की उजास से मन का उपवन खिलाने की एक कोशिश है. किन्तु जिस पल में जुदाई घटी हो उसकी पीड़ा भी रह रहकर मन को व्याकुल करती है. मन का यही तो अजीबोग़रीब खेल है वह गम में भी ख़ुशी तलाश लेता है और फिर उस ख़ुशी को गम की स्याही से खुद ही धुधंला कर देता है. जीवन इसी कशमकश में गुजरता जाता है पर कवि का संतोषी मन इसे भी स्वीकार कर लेता है.

18. ‘लो तुम्हारे पास आये’ 21 मई 2020 कवि की कल्पना ही उसकी प्रिय सहचरी है जो उदासी के अंधकार में भी आशा का दीप जला सकती है. कल्पना के रथ पर सवार होकर कवि अगम्य लोकों की यात्रा पलक झपकते ही कर लेता है. ‘लो तुम्हारे पास आये’ कविता में कवि इसी कल्पना को सम्बोधित है, वह अपने गीतों का उपहार लेकर उसके सम्मुख आया है जिसने उनमें प्राण भर दिए हैं. कविता में लय है, माधुर्य है और एक सरसता है, जो पाठक को भी प्रीति के अनोखे आलोक से भर देती है.

19. ‘मधुर स्वप्न अपने’ 22 मई 2020 ‘मधुर स्वप्न अपने’ कविता विरही हृदय की पुकार है. इसमें अधूरे ख्वाब हैं, नयनों में रुके हुए अश्रु हैं, अनकही पुकार है और गहन उदासी है. इतना सब होने पर भी कवि का जो स्थायी भाव है वह सतह के नीचे बहता ही रहता है, सब कुछ स्वीकारने का भाव, तभी वह इस विरह को कभी प्रेरणा बना लेता है कभी विश्वास, जिसकी ज्योति दूर तक उसका पथ प्रदर्शन करेगी. इसी कारण प्रेम का प्रतिदान न मिले पर कवि के जीवन में प्रीत के फूल खिलते ही रहेंगे.

20. ‘प्रणय गीत’ 23 मई 2020 शिव की पूजा का अधिकारी वही है जो स्वयं शिव बन कर उसकी पूजा करे, इसी भाव को विस्तार दिया है प्रणय गीत में! जिसकी अर्चना, आराधना हम करते हैं, वही तो अंतर में विश्वास जगाता है, वही तो प्रेम का फूल बनकर खिलता है. अनंत काल से वह मीत बनकर राह दिखा रहा है. वही पूजा है, पूजा की सामग्री है और आराध्य देव भी वही है. प्रेम का यह गीत भी वही है और जिसने इसे गढ़ा है उसकी शक्ति भी वही है. ‘प्रणय गीत’ पढ़ते-पढ़ते मन उस असीम के प्रति नत हो जाता है, जिसकी प्रेरणा से यह सारा आयोजन चल रहा है.

21. ‘जीवन दीप’ 24 मई 2020 काव्य और विज्ञान का सुंदर मेल घटता है ‘जीवन दीप’ में, जहाँ एक ओर कवि की चेतना एक दीप बनकर निरंतर उसका पथ प्रदर्शित कर रही है और दूसरी ओर प्रकृति की हर घटना के पीछे का अटल नियम उसे विज्ञान के प्रति आस्थावान बनाये रखता है. इस विशाल ब्रह्मांड की एक लघु इकाई होने के बावजूद वह स्वयं को उसी ऊर्जा से जुड़ा हुआ देखता है जिसके कारण यह सारा आयोजन चल रहा है. पदार्थ और ऊर्जा का आपसी विनिमय उसे अचरज से भरता है और सृष्टि कर्ता के प्रति असीम श्रद्धा से भी!

आज इस काव्य श्रृंखला की अंतिम कविता पर अपनी अंतिम प्रतिक्रिया दे रही हूँ, ग़ज़ल की मुझे ज़्यादा समझ नहीं, पढूँगी अवश्य. विनोद जी और वाणी जी आप दोनों को बहुत बहुत शुभकामनायें !

समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न में तीन भाग हैं

एक एहसास है उम्र भर के लिए
21 कविताएँ

कुछ भरोसा तो है उजालों पर
8 ग़ज़लें

मेरे मधुवन जीयो जुग जुग
11 कविताएँ

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काव्यालय पर प्रकाशित: 12 जून 2020
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