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सुकूने-दिल
तरस जाती हैं सुनने को
किसी की...
न जाने कब किसी से
क्यूँ कहा हमने
सुकूने-दिल की बातें हैं
वो यादें तुम्हारी
कि तुम्हारे दिल
में होगी कभी
चर्चा हमारी भी
-
रणजीत मुरारका
काव्यालय को प्राप्त: 27 Mar 2020. काव्यालय पर प्रकाशित: 24 Jul 2020
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इस महीने :
'सीमा में संभावनाएँ'
चिराग जैन
आदेशों का दास नहीं है शाखा का आकार कभी,
गमले तक सीमित मत करना पौधे का संसार कभी।
जड़ के पाँव नहीं पसरे तो छाँव कहाँ से पाओगे?
जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का ..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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भाग 4 कई गीत और कविताएँ (16 मात्रा)
वाणी मुरारका
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वाणी मुरारका
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'कौन तुम'
डा. महेन्द्र भटनागर
कौन तुम अरुणिम उषा-सी मन-गगन पर छा गयी हो!
लोक धूमिल रँग दिया अनुराग से,
मौन जीवन भर दिया मधु राग से,
दे दिया संसार सोने का सहज
जो मिला करता बड़े ही भाग से,
कौन तुम मधुमास-सी अमराइयाँ महका गयी हो!
वीथियाँ सूने हृदय की ..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 2 मूल तरकीब
वाणी मुरारका
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