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सुकूने-दिल
तरस जाती हैं सुनने को
किसी की...
न जाने कब किसी से
क्यूँ कहा हमने
सुकूने-दिल की बातें हैं
वो यादें तुम्हारी
कि तुम्हारे दिल
में होगी कभी
चर्चा हमारी भी
-
रणजीत मुरारका
विषय:
प्रेम (62)
बीता समय (17)
काव्यालय को प्राप्त: 27 Mar 2020. काव्यालय पर प्रकाशित: 24 Jul 2020
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पर बमों और बंदूकों का नहीं
पटाखों के साथ-साथ
गूंजती है किलकारियाँ भी।
सहमे से मुरझाए होठों पर
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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