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सुकूने-दिल
तरस जाती हैं सुनने को
किसी की...
न जाने कब किसी से
क्यूँ कहा हमने
सुकूने-दिल की बातें हैं
वो यादें तुम्हारी
कि तुम्हारे दिल
में होगी कभी
चर्चा हमारी भी
-
रणजीत मुरारका
विषय:
प्रेम (60)
बीता समय (17)
काव्यालय को प्राप्त: 27 Mar 2020. काव्यालय पर प्रकाशित: 24 Jul 2020
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सुकूने-दिल
इस महीने :
'छाता '
प्रेमरंजन अनिमेष
जिनके सिर ढँकने के लिए
छतें होती हैं
वही रखते हैं छाते
हर बार सोचता हूँ
एक छत का जुगाड़ करुँगा
और लूँगा एक छाता
इस शहर के लोगों के पास
जो छाता है
उसमें
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'एक मनःस्थिति '
शान्ति मेहरोत्रा
कभी-कभी लगता है
जैसे घर की पक्की छत, दीवारें, चौखटें
मेरी गरम साँसों से पिघल कर
मोम-सी बह गई हैं।
केवल ये खिड़कियाँ-दरवाजे जैसे
कभी ..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'खिलौने की चाबी'
नूपुर अशोक
इतनी बार भरी गई है
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कि माँ बन चुकी है एक खिलौना
घूम रही है गोल-गोल
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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