अप्रतिम कविताएँ
कल
कल कहाँ किसने कहा
देखा सुना है
फिर भी मैं कल के लिए
जीता रहा हूँ।

आज को भूले शंका सोच
भय से कांपता
कल के सपने संजोता रहा हूँ।

फिर भी न पाया कल को
और
कल के स्वप्न को
जो कुछ था मेरे हाथ
आज
वही है आधार मेरा
कल के सपने संजोना
है निराधार मेरा

यदि सीख पाऊँ
मैं जीना आज
आज के लिए
तो कल का
स्वप्न साकार होगा
जीवन मरण का भेद
निस्सार होगा
जो कल था वही है आज
जो आज है वही कल होगा
मैं कल कल नदी के नाद
सा बहता रहा हूँ।
- रणजीत मुरारका
Ranjeet Murarka
Email : [email protected]

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घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
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छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
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दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
..

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