अप्रतिम कविताएँ
उद्गार
रात के तीसरे पहर
कोयल की कूक ने हमको जगाया,
और कहा,
नए उषाकाल का
नए रंग, नयी चुनर का
आहवान करो !
किस मोड़ पर आकर रुक गए हो?
यादों की चादर ओढ़े
नयी तमन्ना, नयी उमंग,
कहानी नयी है।
किसी ने कहा बसंत आ गया,
किसी ने
बसंत आता नहीं ले आया जाता है।
हमने महसूस किया
यह वो तरंग है जो बहती है रगों में
निरंतर, रंगीन, नित नूतन।
- रणजीत मुरारका
Ranjeet Murarka
Email : [email protected]

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झर-झर बहते नेत्रों से,
कौन सा सत्य बहा होगा?
वो सत्य बना आखिर पानी,
जो कहीं नहीं कहा होगा।

झलकती सी बेचैनी को,
कितना धिक्कार मिला होगा?
बाद में सोचे है इंसान,
पहले अंधा-बहरा होगा।

तलाश करे या आस करे,
किस पर विश्वास ज़रा होगा?
..

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