छंद में लिखना - आसान तरकीब - 6
लय में लय को तोड़ने का सौन्दर्य

वाणी मुरारका



पिछला भाग

नमस्कार दोस्तो,

इस भाग में हम एक बहुत रोचक विषय पर बात करेंगे -- लय में लय को तोड़ने का सौन्दर्य

पिछली कड़ियों में हमने लय के महत्व की बात की थी, तरकीब द्वारा छंद में लिखने का अभ्यास किया। किन्तु लय और छंद के कुछ अवगुण भी हैं! वे अवगुण क्या हैं यह जानने के पहले लय और छंद के गुण एक बार फिर याद कर लें --

लय कविता का एक अभिन्न गुण है। लय में कही गई बात में एक सरल बहाव की अनुभूति होती है, जिससे कि पढ़ना सरल हो जाता है, याद रखना सरल हो जाता है। बात हमारे अवचेतन में सरलता से प्रवेश करती है। लय में लिख पाने से कवि का आत्मविश्वास बढ़ता है।

लय के अवगुण

किन्तु लय उबाऊ भी हो सकता है। एक ही लय में लम्बे अंतराल तक बहती पंक्तियों से घैल पैदा होता है, नींद सी आने लगती है। सोचिए यदि पूरे रामचरित मानस में सिर्फ चौपाइयाँ होतीं -- दोहे, सोरठे, अन्य गीतमय छंद, श्लोक इत्यादि नहीं होते तो पूरे ग्रन्थ को ग्रहण करना कितना कठिन और उबाऊ हो जाता।

इस शृंखला की पिछली कड़ियों का आपने यदि कुछ दिन लगातार रियाज़ किया होगा, और ठीक से देखा होगा कि पंक्तियाँ इच्छित मात्राओं की बन रही हैं कि नहीं, तो आपने पाया होगा कि कुछ ही दिनों में बड़ी सरलता से आप एकदम सही छंद में लिख पा रहे हैं। किन्तु कविता सिर्फ़ लय से नहीं बनती। क्या कह रहे हैं, कहने का अंदाज़ कितना खास है, यह भी महत्वपूर्ण है।

लिखने में यदि आप लय के घैल (खुमार) में पड़ जाते हैं तो खरी उज्ज्वल पंक्तियां बनने में अड़चन हो सकती है, बहुत आम सी पंक्तियाँ बनती हैं।

इसीलिए आज का विषय -- लय में लय को तोड़ना, और उसका सौंदर्य

लय में लय तोड़ने के फायदे

लय को तोड़ने से, और फिर भी लय कायम रखने से रचना और रोचक बनती है। पाठक और श्रोता का भटकता ध्यान फिर रचना की ओर खिंचता है, जो बात कही जा रही है, उसकी ओर ध्यान खिंचता है।

नृत्य की, नाटक की अनुभूति होती है। रचना और वास्तविक लगती है। गद्य या वार्तालाप के जैसे, और फिर भी कविता कायम रहती है।

तो यह कैसे हो? कई प्रकार से सम्भव है।

लय में लय तोड़ने के प्रकार

  • दो या अधिक छंद एक साथ मिला सकते हैं।
  • छंद में normally हर पंक्ति में एक वाक्य, एक विचार भी समाप्त होता है। किन्तु जब कविता की पंक्ति छंद में हो पर वाक्य और विचार पंक्ति से लम्बी होकर दूसरी पंक्ति में बहे, उसका असर भी अनूठा होता है।
  • छंद बद्ध कविता हो किन्तु अतुकान्त हो, या किसी पंक्ति में तुक या छंद का क्रम एक असर डालने के लिए जान कर तोड़ा गया हो।
  • मुक्त छंद कविता हो, फिर भी उसमें एक निहित लय हो। बल्कि यह मुक्त छंद कविता के लिए बहुत आवश्यक है।
  • मुक्त छंद कविता में तुकान्त पंक्तियाँ हों, या कोई phrase बार बार आए। इससे मुक्त छंद कविता का सौन्दर्य बहुत बढ़ता है।
इस हर प्रकार का उदाहरण देखते हैं --

दो या अधिक छंद - पहला तरीका

सुर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' की विख्यात रचना 'वीणा वादिनी वर दे' में हर बन्ध में अंतिम पंक्ति 10 मात्रा की है, और बाकी पंक्तियाँ 16 मात्रा की।

वर दे, वीणावादिनि वर दे।
प्रिय स्वतंत्र रव, अमृत मंत्र नव
भारत में भर दे।

नव गति नव लय ताल छंद नव
नवल कंठ नव जलद मन्द्र रव
नव नभ के नव विहग वृंद को,
नव पर नव स्वर दे।

देखिए, verse की अंतिम पंक्ति छोटी, बाकी 16 मात्रा की

ऐसी आपको कई रचनाएँ मिलेंगी। मैंने इस प्रकार से लिखने का प्रयास किया - जिसमें 11, 16 और 14 मात्रा की पंक्तियाँ मिश्रित हैं। देखिए पढ़ने-सुनने में कितना रोचक लगता है।

मेरा प्रयास

प्रेरणा बिखर गई
भावना विचार भी
बंजर धरती पर मँडराते
इच्छाओं के भ्रमर कई

झूठ ही लगा सभी
अर्थ ना दिखा कहीं
कोई आकर राह दिखा दे
बहती ज्योति की धार सी

दो या अधिक छंद - दूसरा तरीका

लम्बी रचनाओं में, खण्ड काव्य में विभिन्न छंद अक्सर पाए जाते हैं। छंद बदलने से सीन का मू्ड बदल जाता है।

साहिर लुधियानवी की लम्बी anti-war रचना 'परछाइयाँ' में 4 अलग छन्द हैं।

जब नायक नायिका साथ हैं, प्रेम का माहौल है --
मेरे पलंग पे बिखरी हुई किताबों को,
अदाए-अज्ज़ो-करम से उठा रही हो तुम
सुहाग-रात जो ढोलक पे गाये जाते हैं,
दबे सुरों में वही गीत गा रही हो तुम

और जब युद्ध का आतंक छाने लगता है --
नागाह लहकते खेतों से टापों की सदायें आने लगीं
बारूद की बोझल बू लेकर पच्छम से हवायें आने लगीं

तामीर के रोशन चेहरे पर तखरीब का बादल फैल गया
हर गाँव में वहशत नाच उठी, हर शहर में जंगल फैल गया

पंक्ति से ज्यादा लम्बा वाक्य

लय को लय में तोड़ने के दूसरे तरीके 'पंक्ति से ज्यादा लम्बा वाक्य' का उदाहरण देखें, हरिवंशराय बच्चन की कविता 'रात आधी खींच कर मेरी हथेली' में --

एक बिजली छू गई सहसा जगा मैं
कृष्णपक्षी चाँद निकला था गगन में।
इस तरह करवट पड़ी थी तुम कि आँसू
बह रहे थे इस नयन से उस नयन में।
मैं लगा दूँ आग इस संसार में है
प्यार जिसमें इस तरह असमर्थ कातर।
जानती हो उस समय क्या कर गुज़रने
के लिए था कर दिया तैयार तुमने!
रात आधी खींच कर मेरी हथेली
एक उंगली से लिखा था प्यार तुमने।

यहाँ ये पंक्तियाँ
इस तरह करवट पड़ी थी तुम कि आँसू
बह रहे थे इस नयन से उस नयन में।

ये पंक्तियाँ
मैं लगा दूँ आग इस संसार में है
प्यार जिसमें इस तरह असमर्थ कातर।

और ये
जानती हो उस समय क्या कर गुज़रने
के लिए था कर दिया तैयार तुमने!

तीनों इस अलंकार का उदाहरण हैं। कविता की हर पंक्ति 21 मात्रा की है, किन्तु वाक्य और विचार दो पंक्तिओं में पूरा होता है। जैसे सिर्फ़ "मैं लगा दूँ आग इस संसार में है" में वाक्य बहुत अधूरा है, जो दूसरी पंक्ति में पूरा होता है।

इस अलंकार को अंग्रेजी में enjambment कहते हैं। हिन्दी में क्या कहते हैं यदि आपको पता हो तो बताइयेगा।

जब आप छंद में लिखने लगेंगे तो स्वत: ही कभी कभी यह असर आपको अपनी पंक्तियों में आता नज़र आएगा। इसका सौन्दर्य काव्यपाठ में खास उभरता है। विनोद तिवारी की आवाज़ में इस कविता का काव्यपाठ आप यहाँ सुन सकते हैं

छंदबद्ध अतुकान्त

लम्बी छंदबद्ध रचनाएँ कई बार अतुकान्त भी होती हैं। अतुकान्त माने उनकी पंक्तियाँ rhyme नहीं करती हैं। संस्कृत रचनाओं में यह अक्सर देख सकते हैं जैसे कि भगवद्गीता का यह श्लोक -

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ॥२:४७॥

यहाँ पंक्तियाँ छंद में हैं (अनुष्टुप छंद), किन्तु कदाचन का तुक कर्मणि से नहीं मिल रहा है।

अंग्रेज़ी में शेक्सपियर के नाटकों में अधिकांश पंक्तियाँ iambic pentameter छंद में हैं किन्तु अतुकान्त जैसे Merchant of Venice नाटक से --

In sooth I know not why I am so sad:
It wearies me; you say it wearies you;

इस प्रकार की पंक्तियों का अतुकान्त होने से कुछ सौन्दर्य शायद नहीं बढ़ता है। हाँ लिखना और सरल हो जाता है और पंक्तियाँ छंद में होने से फिर भी याद रखने में आसानी होती है।

मुक्त छंद में लय

अब मुक्त छंद में लय की बात करते हैं। अच्छी मुक्त छंद रचना में स्पष्ट बंधा छंद नहीं होने पर भी एक लय होती है, होनी चाहिए।

धर्मवीर भारती की यह रचना 'क्योंकि' पढ़ें। पढ़ने में ही लय का आभास होगा।

...... क्योंकि सपना है अभी भी -
इसलिए तलवार टूटे, अश्व घायल
कोहरे डूबी दिशायें,
कौन दुश्मन, कौन अपने लोग, सब कुछ धुंध-धूमिल,
किन्तु कायम युद्ध का संकल्प है अपना अभी भी
...... क्योंकि है सपना अभी भी!

तोड़ कर अपने चतुर्दिक का छलावा
जबकि घर छोड़ा, गली छोड़ी, नगर छोड़ा,
कुछ नहीं था पास बस इसके अलावा,
विदा बेला, यही सपना भाल पर तुमने तिलक की तरह आँका था
(एक युग के बाद अब तुमको कहां याद होगा)
किन्तु मुझको तो इसी के लिए जीना और लड़ना
है धधकती आग में तपना अभी भी
...... क्योंकि सपना है अभी भी!

पूरी कविता पढ़ने यहाँ पर पधारें

यह पंक्तियाँ सब 7 का कोई multiple है। 14, 21, 28...।

यह दो पंक्तियाँ भी कुल मिलाकर 7 का multiple है -- 63|

यह पंक्ति सात का multiple नहीं है पर उसमें 21 से सिर्फ़ दो मात्रा अधिक हैं।

अर्थात इस कविता को किसी 7 मात्रा के ताल, जैसे रूपक ताल, की धुन में आसानी से ढाला जा सकता है।

मुक्त छंद कविताओं की इस माँग पर विनोद तिवारी का लेख देखेंगीत गतिरूप में इसके लिए सुविधा भी है।

इस प्रकार से लिखने के लिए कवि कोई मात्राएँ गिनता नहीं रहता होगा, किन्तु कवि में लय का एहसास निहित होगा, और मूल पंक्ति की लय के आधार पर आगे लिखता होगा। जैसे यहाँ "क्योंकि सपना है अभी भी"।

मुक्त छंद में तुकान्त पंक्तियाँ

ध्वनि के किसी pattern के दोहराव से लय की अनुभूति होती है। समान बहर की पंक्तियों से तो होता ही है, तुकान्त पंक्तियों, rhyme करती पंक्तियोँ से भी ध्वनि का pattern repeat होता है।

इसी कविता 'क्योंकि' में हर verse की अंतिम पंक्ति "क्योंकि सपना है अभी भी" है। और पिछली पंक्ति हमेशा इसके तुक में होती है -- अपना अभी भी, तपना अभी भी इत्यादि। इससे लय का स्प्ष्ट एहसास होता है। और verse में बीच में भी कभी कभी तुकान्त पंक्तियाँ मिलती हैं -- जैसे आगे की पंक्तियों में --

तुम नहीं हो, मैं अकेला हूँ मगर
यह तुम्ही हो जो
टूटती तलवार की झंकार में
या भीड़ की जयकार में
या मौत के सुनसान हाहाकार में
फिर गूंज जाती हो

इस सब से मुक्त छंद कविता में भी लय का आभास होता है, जो इस विधा की कविता के लिए अतिआवश्यक है।

अन्त में

यह सब कलाबाज़ियाँ कर पाने के पहले बेसिक लय का रियाज़ करना ज़रूरी है। जिससे कि लय की समझ, लय का बहाव आपकी कविता लिखने की प्रक्रिया का सहज हिस्सा बन जाए।

जैसे साइकिल के साथ कलाबाजियाँ करने से पहले साइकिल चलाना आना ज़रूरी है। इसलिए भाग 2-5 में जो अभ्यास दिए गए हैं उन्हें बार-बार करें और उसके आधार पर अपने लिए नए नए अभ्यास बनाएँ।

और यह शृंखला आपको कैसी लगी ज़रूर बताएँ। अपने दोस्तों के साथ भी साझा करें।

प्रकाशित : 9 मार्च 2025

Topic:
Craft of Poetry (15)
***
Donate
A peaceful house of the beauty and solace of Hindi poetry, free from the noise of advertisements... to keep Kaavyaalaya like this, please donate.

₹ 500
₹ 250
Another Amount
Vani Murarka
's other poems on Kaavyaalaya

 Agar Suno To
 Adhooree Saadhanaa
 Gahraa Aangan
 Chup See Lagee Hai
 Jal Kar De
 Desh Kee Naagarik
 Dheere-dheere
 Shahar Kee Diwali Par Amaavas Kaa Aahvaan
This Month :
'Sabse Taaqatvar'
Aashish Qureshi 'Mahid'


jab aap kuchh naheen kar sakate
to kar sakate hain vo
jo sabase taak़tavar hai

tooph़aan kaa dhaagaa
dariyaa kaa tinakaa
door pahaaD़ par jalataa diyaa

..

Read more here...
This Month :
'Haadse Ke Baad Kee Deepawali'
Geeta Dubey


raushanee se nahaae is shahar men
khushiyon kee laḌiyaa(n) jagamagaatee hain
cheer kar gamon ke a(n)dhere ko
jindagee aaj phir se muskaraatee hai.
dhamaakaa phir goonjataa hai
par bamon aur bandookon kaa naheen
paTaakhon ke saath saath
goonjatee hai kilakaariyaa(n) bhee.
sahame se murjhaae hoThon par
..

Read and listen here...
संग्रह से कोई भी कविता | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेखहमारा परिचय | सम्पर्क करें

a  MANASKRITI  website