अप्रतिम कविताएँ
आठ वर्ष
रिमझिम सावन बरसा जब
अंक तुम्हें भर लायी थी
कुछ खोयी सी, कुछ अबूझ
कुछ खुश, कुछ घबराई थी

गोल मटोल, चार पैर पर
घर आँगन सब नाप लिया
नन्हे वामन जैसे तुमने
मेरा परिसीमन भांप लिया

पहली बार तीस मिनट जब
तुमसे हुई जुदाई थी
दरवाज़े पर बैठी बैठी
रो रो आँख सुजायी थी

धीरे धीरे ज्ञात हुआ
तुम ऐसे नहीं हो वैसे हो
जगह जगह सुनती आयी
तुम जाने कैसे कैसे हो

ठोक पीट कर सांचे में
तुमको सबने गढ़ना चाहा
पर मैंने पूरे मन से
सिर्फ तुम्हें पढ़ना चाहा

मुझको नियमों कानूनों से
दस्तूरों से कुछ काम नहीं
ये हम दोनों की दुनिया है
यहाँ और किसी का नाम नहीं

जो मुखरित होते शब्दों में
उनके भी भाव बिखरते हैं
तुम आँखों से जो कहते हो
वो सीधे, हृदय उतरते हैं

सब कहते हैं , तुम मुझसे हो
मैं तुमसे जीवन पाती हूँ
तुम सोते हो जब आँख भींच
मैं देख देख भर जाती हूँ ...
- जया प्रसाद

काव्यालय को प्राप्त: 2 Jul 2020. काव्यालय पर प्रकाशित: 9 Oct 2020

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पवन बहा फिर अमोघ अचूक, घर घर की बाती को फूंक,
गहन निशा बंद घरों के द्वार, स्तब्ध था मानो संसार।

ऐसी एक श्रावण रजनी में, अति प्राचीन मथुरा नगरी में,
प्राचीर तले अति श्रांत शुद्धचित्त, संन्यासी उपगुप्त थे निद्रित।

सहसा नूपुर ध्वनि ज्यों निर्झर, कोमल चरण पड़े जो उर पर,
चौंके साधक टूटी निद्रा, छूट गयी आँखों से तन्द्रा।
..

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पुस्तक में चित्र तो बहुत देखे हैं, पर पुस्तक में वीडियो?? ऑनलाइन पुस्तक प्रकाशन की दुनिया में यह काव्यालय की अभिनव पहल है।

ये पंक्तियाँ विनोद तिवारी के व्यक्तित्व का सार हैं‌ -- प्रकृति के रहस्यों को बेनक़ाब करने की एक वैज्ञानिक की ललक, दिलेरी, और कवि-मन की कोमलता और रूमानियत। साथ ही ये पंक्तियाँ इस पूरी पुस्तक के चमन में आपको आमंत्रित भी कर रही हैं।

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