तुम समन्दर का किनारा हो
मैं एक प्यासी लहर की तरह
तुम्हे चूमने के लिए उठता हूँ
तुम तो चट्टान की तरह
वैसी ही खड़ी रहती हो
मैं ही हर बार तुम्हे
बस छू के लौट जाता हूँ
लोक धूमिल रँग दिया अनुराग से,
मौन जीवन भर दिया मधु राग से,
दे दिया संसार सोने का सहज
जो मिला करता बड़े ही भाग से,
कौन तुम मधुमास-सी अमराइयाँ महका गयी हो!