अप्रतिम कविताएँ
अगले खम्भे तक का सफ़र
याद है,
तुम और मैं
पहाड़ी वाले शहर की
लम्बी, घुमावदार,
सड़्क पर
बिना कुछ बोले
हाथ में हाथ डाले
बेमतलब, बेपरवाह
मीलों चला करते थे,
खम्भों को गिना करते थे,
और मैं जब
चलते चलते
थक जाता था
तुम कहती थीं ,
बस
उस अगले खम्भे
तक और ।

आज
मैं अकेला ही
उस सड़्क पर निकल आया हूँ ,
खम्भे मुझे अजीब
निगाह से
देख रहे हैं
मुझ से तुम्हारा पता
पूछ रहे हैं
मैं थक के चूर चूर हो गया हूँ
लेकिन वापस नहीं लौटना है
हिम्मत कर के ,
अगले खम्भे तक पहुँचना है
सोचता हूँ
तुम्हें तेज चलने की आदत थी,
शायद
अगले खम्भे तक पुहुँच कर
तुम मेरा
इन्तजार कर रही हो !
- अनूप भार्गव
Anoop Bhargava
email: [email protected]
Anoop Bhargava
email: [email protected]

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सौन्दर्य और सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
अनूप भार्गव
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ

 अगले खम्भे तक का सफ़र
 अस्तित्व
 प्रतीक्षा
 यूँ ही ...
 रिश्ते
 हाइकु
इस महीने :
'अमरत्व'
क्लेर हार्नर


कब्र पे मेरी बहा ना आँसू
हूँ वहाँ नहीं मैं, सोई ना हूँ।

झोंके हजारों हवाओं की मैं
चमक हीरों-सी हिमकणों की मैं
शरद की गिरती फुहारों में हूँ
फसलों पर पड़ती...
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website