जब कभी तेरी याद आती है
चांदनी में नहा के आती है।
भीग जाते हैं आँख में सपने
शब में शबनम बहा के आती है।
मेरी तनहाई के तसव्वुर में
तेरी तसवीर उभर आती है।
तू नहीं है तो तेरी याद सही
ज़िन्दगी कुछ तो संवर जाती है।
जब बहारों का ज़िक्र आता है
मेरे माज़ी की दास्तानों में
तब तेरे फूल से तबस्सुम का
रंग भरता है आसमानों में।
तू कहीं दूर उफ़क से चल कर
मेरे ख्यालों में उतर आती है।
मेरे वीरान बियाबानों में
प्यार बन कर के बिखर जाती है।
तू किसी पंखरी के दामन पर
ओस की तरह झिलमिलाती है।
मेरी रातों की हसरतें बन कर
तू सितारों में टिमटिमाती है।
वक्ते रुख़सत की बेबसी ऐसी
आँख से आरज़ू अयाँ न हुई।
दिल से आई थी बात होठों तक
बेज़ुबानी मगर ज़ुबां न हुई।
एक लमहे के दर्द को लेकर
कितनी सदियां उदास रहती हैं।
दूरियां जो कभी नहीं मिटतीं
मेरी मंज़िल के पास रहती हैं।
रात आई तो बेकली लेकर
सहर आई तो बेकरार आई।
चन्द उलझे हुये से अफ़साने
ज़िन्दगी और कुछ नहीं लाई।
चश्मे पुरनम बही, बही, न बही।
ज़िन्दगी है, रही, रही, न रही।
तुम तो कह दो जो तुमको कहना था
मेरा क्या है कही, कही, न कही।