अप्रतिम कविताएँ
मेरे मधुवन
दूर क्षितिज के पीछे से फिर
तुमने मुझको आज पुकारा।
तुमको खो कर भी मैंने
सँजो रखा है प्यार तुम्हारा।

एक सफेद रात की छाया
अंकित है स्मृति में मेरी।
तारों का सिंगार सजाए,
मधुऋतु थी बाहों में मेरी।

संगमरमरी चट्टानों के
बीच बह रही वह जलधारा।
जैसे चंदा के आंचल से
ढुलक रहा हो रूप तुम्हारा।

नदिया की चंचल लहरों संग
मचल मचल कर उठती गिरती।
हम दोनों के अरमानों की
बहती थी कागज़ की किश्ती।

छूकर बिखरे बाल तुम्हारे
मस्त हो गया था बयार भी।
सारी मर्यादाएं भूला
मेरा पहला पहल प्यार भी।

और तुम्हारे अधरों का तो
ताप न भूलेगा जीवन भर।
जब मेरे क्वांरे सपनों ने
उड़ उड़ कर चूमा था अंबर।

तभी अचानक हम दोनों की
राह रोक ली चट्टानों ने।
अपनी कागज की किश्ती को
डूबो दिया कुछ तूफानों ने।

इन मासूम तमन्नाओं पर
तब यथार्थ की बिजली चमकी।
और छलछला उठीं तुम्हारी
आँखों में बूंदें शबनम की।

उस शबनम की एक बूँद अब
मेरी आँखों में रहती है।
मूक व्यथा अनकही कथा की
मेरे गीतों में सजती है।

रूढिवादिता के अंकुश में
युगों युगों से जकड़ा जीवन।
दकियानूसी वैचारिकता
में कुंठित है मानव का मन।

जाने कितनी और किश्तियाँ
डूबी होंगी तूफानों में।
कितनी राहों की आकांक्षा,
टूटी होंगी चट्टानों में ।

नहीं झुकेंगी ये चट्टानें
विनती से या मनुहारों से।
राह नहीं देते हैं पर्वत
खुशामदों से इसरारों से।

पतझर के बंधन में बंधक,
मधुऋतु के कितने सुख सपने।
राह पतझरी, मरुस्थली पर
कोई कली न पाती खिलने।

किन्तु एक दिन तो बरसेगा
आँगन में मनभावन सावन।
पुष्पित और पल्लवित होगा
सुन्दर सुख सपनो का मधुवन।

चलो समय के साथ चलेंगे,
परिवर्तन होगा धरती पर।
नया ज़माना पैदा होगा,
बूढ़ी दुनिया की अरथी पर।

जो कुछ हम पर बीत चुकी है,
उस से मुक्त रहो, ओ नवयुग।
नए नए फूलों से महको,
मेरे मधुवन, जीयो जुग जुग।
- विनोद तिवारी
काव्य संकलन समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न
विषय:
प्रेम (60)
आशा विश्वास (18)
विरह (13)

काव्यालय को प्राप्त: 1 May 2001. काव्यालय पर प्रकाशित: 1 Jun 2017

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
विनोद तिवारी
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ

 एक विश्वास
 ऐसी लगती हो
 जीवन दीप
 दुर्गा वन्दना
 प्यार का नाता
 प्रवासी गीत
 प्रेम गाथा
 मेरी कविता
 मेरे मधुवन
 यादगारों के साये
इस महीने :
'एक आशीर्वाद'
दुष्यन्त कुमार


जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चाँद तारों सी अप्राप्य ऊँचाइयों के लिये
रूठना मचलना सीखें।
हँसें
मुस्कुराऐं
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'तोंद'
प्रदीप शुक्ला


कहते हैं सब लोग तोंद एक रोग बड़ा है
तोंद घटाएँ सभी चलन यह खूब चला है।
पर मानो यदि बात तोंद क्यों करनी कम है
सुख शान्ति सम्मान दायिनी तोंद में दम है।

औरों की क्या कहूं, मैं अपनी बात बताता
बचपन से ही रहा तोंद से सुखमय नाता।
जिससे भी की बात, अदब आँखों में पाया
नाम न लें गुरु, यार, मैं पंडित 'जी' कहलाया।

आज भी ऑफिस तक में तोंद से मान है मिलता
कितना भी हो बॉस शीर्ष, शुक्ला 'जी' कहता।
मान का यह
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...

छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 5 गीतों की ओर

वाणी मुरारका
इस महीने :
'सीमा में संभावनाएँ'
चिराग जैन


आदेशों का दास नहीं है शाखा का आकार कभी,
गमले तक सीमित मत करना पौधे का संसार कभी।

जड़ के पाँव नहीं पसरे तो छाँव कहाँ से पाओगे?
जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website