अप्रतिम कविताएँ
सीप में मोती
मैंने अनजाने ही भीगे बादलों से पूछा
छुआ तुमने क्या
उस सीप में मोती को
बादलों ने नकारा उसे
बोले दुहरी है अनुभूति मेरी
बहुत सजल है सीप का मोती
मेरा सोपान नहीं
स्वप्न नहीं
अपने में एक गिरह लिए रहता है
समुद्र का शोर लिए रहता है

मैं छू भी लूँ उसको
तो भी वो अपने अस्तित्व लिए रहता है
कथन हो या कहानी वो
एक पात्र बना रहता है
अँजुलि भर पी भी लूँ
तो भी वो एक मरुस्थल बना रहता है
यह वो एकाकी है जो मुझे छूती है
मुझे नकार मुझे ही अपनाती है
सीप में मोती बन स्वाति नक्षत्र को दमका जाती है
मेरा ही पात्र बन मुझे ही अँगुलि भर पानी पिला जाती है
इसी गरिमा को अपना मुझे ही छू जाती है।
मैं यही अनुभूति लिए
नकारते हुए अपनाते हुए
भीगते हुए बहते हुए
सीप में ही मोती बन जाती हूँ।
- रजनी भार्गव
Rajni Bhargava
email: [email protected]
Rajni Bhargava
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 सीप में मोती

छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 3 खास विषयों पर लिखना

वाणी मुरारका
इस महीने :
'कौन तुम'
डा. महेन्द्र भटनागर


कौन तुम अरुणिम उषा-सी मन-गगन पर छा गयी हो!

              लोक धूमिल रँग दिया अनुराग से,
              मौन जीवन भर दिया मधु राग से,
              दे दिया संसार सोने का सहज
              जो मिला करता बड़े ही भाग से,
कौन तुम मधुमास-सी अमराइयाँ महका गयी हो!

             वीथियाँ सूने हृदय की ..

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छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 2 मूल तरकीब

वाणी मुरारका

छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 1 लय का महत्व

वाणी मुरारका
इस महीने :
'कामायनी ('निर्वेद' सर्ग के कुछ छंद)'
जयशंकर प्रसाद


तुमुल कोलाहल कलह में
मैं हृदय की बात रे मन!

विकल होकर नित्य चंचल,
खोजती जब नींद के पल,
चेतना थक-सी रही तब,
मैं मलय की वात रे मन!

चिर-विषाद-विलीन मन की,
इस व्यथा के तिमिर-वन की;
..

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