अप्रतिम कविताएँ

कुछ नहीं चाहा
कुछ नहीं चाहा है तुमसे
पर तुम एक खूबसूरत मोड़ हो
जहाँ ठहरने को मन करता है
कुछ पल चुनने का मन करता है
तुम्हे पकड़ पास बिठाने को मन करता है

कुछ नहीं चाहा है तुमसे
तुम एक लगाव हो
जिसे कुछ सुनाने को मन करता है
कुछ भी कहने को मन करता है
तुम्हे पुकार बस हाँ या ना कहने को मन करता है
कुछ नहीं चाहा है तुमसे
तुम एक पर खूबसूरत मोड़ हो
जहाँ ठहरने को मन करता है।
- रजनी भार्गव
काव्यपाठ: नूपुर अशोक
Rajni Bhargava
email: [email protected]
विषय:
प्रेम (62)

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ज्योत्सना मिश्रा


कभी-कभी जीवन कोई घोषणा नहीं करता—
वह बस बहता है,
जैसे कोई पुराना राग,
धीरे-धीरे आत्मा में उतरता हुआ,
बिना शोर, बिना आग्रह।

हमारे साथ के तीस वर्ष पूर्ण हुए हैं।
कभी लगता है हमने समय को जिया,
कभी लगता है समय ने हमें तराशा।
यह साथ केवल वर्ष नहीं थे—
यह दो आत्माओं का मौन संवाद था,
जो शब्दों से परे,
पर भावों से भरपूर रहा।

जब हमने साथ चलना शुरू किया,
तुम थे स्वप्नद्रष्टा—
शब्दों के जादूगर,
भविष्य के रंगीन रेखाचित्रों में डूबे हुए।
और मैं…
मैं थी वह ज़मीन
..

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'तुम तो पहले ऐसे ना थे'
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तुम तो पहले ऐसे न थे
रात बिरात आओगे
देर सवेर आओगे
हम नींद में रहें
आँख ना खुले
तो रूठ जाओगे...

स्वप्न में आओगे
दिवास्वप्न दिखाओगे
हम कलम उठाएँगे
तो छिप जाओगे...

बेचैनियों का कभी
..

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'कुछ प्रेम कविताएँ'
प्रदीप शुक्ला


1.
प्रेम कविता, कहानियाँ और फ़िल्में
जहाँ तक ले जा सकती हैं
मैं गया हूँ उसके पार
कई बार।
इक अजीब-सी बेचैनी होती है वहाँ
जी करता है थाम लूँ कोई चीज
कोई हाथ, कोई सहारा।
मैं टिक नहीं पाता वहाँ देर तक।।

सुनो,
अबसे
..

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