अप्रतिम कविताएँ
समय की लिपि
किसने कहा इतिहास मेरा है या तुम्हारा
यह तो एक समूह है जो इधर से गुज़र गया
एक ख्याल है जो करवट बदल कर सो गया
एक तारीख है जो समय की लिपि से मिटी जाती है

आज जिन तालिबान ने बुद्ध के अवशेष्ण को नष्ट किया
कल वो भी समय की लिपि पर बिखर जाएँगे
माना जीने के लिए हम सब का सार्थक होना ज़रूरी है
पर किसी की सार्थकता को निरर्थक बनाना ज़रूरी तो नहीं

समय की लिपि पर कुरेद कर अपना पता लिख भी दिया तुमने
तो भी इतिहास न मेरा है न तुम्हारा
यह तो एक समूह है जो इधर से गुज़र गया
एक गुमनाम पता है जो आगे मोड़ पर जा कर बिखर गया।
- रजनी भार्गव
Rajni Bhargava
email: [email protected]
विषय:
समाज (31)

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
रजनी भार्गव
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ

 अभिव्यक्तियां
 कुछ नहीं चाहा
 समय की लिपि
 सीप में मोती
इस महीने :
'दरवाजे में बचा वन'
गजेन्द्र सिंह


भीगा बारिश में दरवाजा चौखट से कुछ झूल गया है।
कभी पेड़ था, ये दरवाजा सत्य ये शायद भूल गया है।

नये-नये पद चिन्ह नापता खड़ा हुआ है सहमा-सहमा।
कभी बना था पेड़ सुहाना धूप-छाँव पा लमहा-लमहा।
चौखट में अब जड़ा हुआ है एक जगह पर खड़ा हुआ है,
कभी ठिकाना था विहगों का आज ...

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'पेड़ों का अंतर्मन'
हेमंत देवलेकर


कल मानसून की पहली बरसात हुई
और आज यह दरवाज़ा
ख़ुशी से फूल गया है

खिड़की दरवाज़े महज़ लकड़ी नहीं
विस्थापित जंगल होते हैं

मुझे लगा, मैं पेड़ों के बीच से आता-जाता हूँ
टहनियों पर ...
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'छाता '
प्रेमरंजन अनिमेष


जिनके सिर ढँकने के लिए
छतें होती हैं
वही रखते हैं छाते

हर बार सोचता हूँ
एक छत का जुगाड़ करुँगा
और लूँगा एक छाता

इस शहर के लोगों के पास
जो छाता है
उसमें

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website