अप्रतिम कविताएँ

नदी समंदर होना चाहती है
आहत सी सभ्यता के द्वार पे
कब तक निहारे आँगन
बंधन तोड़ जाना चाहती है

युगों का बोझ लिये बहती रही
थकने लगी है शायद
कुछ विश्राम पाना चाहती है

अथाह जल-राशि की जो स्वामिनी
क्षितिज पार होती हुई
अंतरिक्ष समाना चाहती है

ओह पायी है मधुरता कितनी
न आँसू भी धो सके
ये नमकीन होना चाहती है

बंधन में छटपटाती है बहुत
पत्थरों को तराशती
अब विस्तार पाना चाहती है

बांटती रही है जग को जीवन
भीगी-भीगी सी नदी
समंदर हो जाना चाहती है
- शिखा गुप्ता
Shikha Gupta
Email : [email protected]

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सौन्दर्य और सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
शिखा गुप्ता
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ

 इंतज़ार सयाना हो गया
 क्या हूँ मैं
 नदी समंदर होना चाहती है
 मेरी मम्मी कहती हैं
इस महीने :
'पुकार'
अनिता निहलानी


कोई कथा अनकही न रहे
व्यथा कोई अनसुनी न रहे,
जिसने कहना-सुनना चाहा
वाणी उसकी मुखर हो रहे!

एक प्रश्न जो सोया भीतर
एक जश्न भी खोया भीतर,
जिसने उसे जगाना चाहा
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website