अप्रतिम कविताएँ

इंतज़ार सयाना हो गया
इंतज़ार सयाना हो गया
हर काम निबटाता है सलीक़े से
हर बात में ले आता है तुम्हें
जब-तब वादों की दे कर दुहाई
और जब भी डगमगाता है भरोसा
मन्नत के धागों में जोड़ लेता है
.... एक और ज़िद्दी गाँठ
इंतज़ार सयाना हो गया
हो जाता है बूढ़ा हर शाम थोड़ा
चल पड़ता है फिर .... हर सुबह
नयी झुर्रियाँ समेटता
नज़रों में उतरते मोतियाबिंद से बेपरवाह
जा खड़ा होता है
उनींदे रास्तों पर मील के पत्थर सा
क्यूंकि इंतज़ार सयाना हो गया
- शिखा गुप्ता
काव्यपाठ: शिखा गुप्ता
Shikha Gupta
Email : [email protected]
विषय:
संकल्प (14)

काव्यालय को प्राप्त: 6 Nov 2017. काव्यालय पर प्रकाशित: 7 Jul 2023

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गजेन्द्र सिंह


भीगा बारिश में दरवाजा चौखट से कुछ झूल गया है।
कभी पेड़ था, ये दरवाजा सत्य ये शायद भूल गया है।

नये-नये पद चिन्ह नापता खड़ा हुआ है सहमा-सहमा।
कभी बना था पेड़ सुहाना धूप-छाँव पा लमहा-लमहा।
चौखट में अब जड़ा हुआ है एक जगह पर खड़ा हुआ है,
कभी ठिकाना था विहगों का आज ...

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पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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हेमंत देवलेकर


कल मानसून की पहली बरसात हुई
और आज यह दरवाज़ा
ख़ुशी से फूल गया है

खिड़की दरवाज़े महज़ लकड़ी नहीं
विस्थापित जंगल होते हैं

मुझे लगा, मैं पेड़ों के बीच से आता-जाता हूँ
टहनियों पर ...
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'छाता '
प्रेमरंजन अनिमेष


जिनके सिर ढँकने के लिए
छतें होती हैं
वही रखते हैं छाते

हर बार सोचता हूँ
एक छत का जुगाड़ करुँगा
और लूँगा एक छाता

इस शहर के लोगों के पास
जो छाता है
उसमें

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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