अप्रतिम कविताएँ
खिलौने की चाबी
इतनी बार भरी गई है
दुःख, तकलीफ और त्याग की चाबी
कि माँ बन चुकी है एक खिलौना
घूम रही है गोल-गोल
रोटी की तरह गोल-गोल
तुलसी चौरे पर गोल-गोल
किचन-ऑफिस में गोल-गोल

बन्द करो अब चाबी भरना
सो जाओ माँ अब तो दो पल
पसर कर, सारी दुनिया भूलकर
बिना किसी अपराध बोध के।
- नूपुर अशोक
विषय:
स्त्री (18)
माँ ममता (5)

काव्यालय को प्राप्त: 5 May 2025. काव्यालय पर प्रकाशित: 9 May 2025

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
नूपुर अशोक
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ

 खिड़की और किरण
 खिलौने की चाबी
 गेंद और सूरज
 चाय 1
 चाय 2
 चाय 3
 चाय 4
 चाय 5
 चाय 6
 चाय 7
इस महीने :
'सबसे ताक़तवर'
आशीष क़ुरैशी ‘माहिद’


जब आप कुछ नहीं कर सकते
तो कर सकते हैं वो
जो सबसे ताक़तवर है

तूफ़ान का धागा
दरिया का तिनका
दूर पहाड़ पर जलता दिया

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'हादसे के बाद की दीपावली'
गीता दूबे


रौशनी से नहाए इस शहर में
खुशियों की लड़ियाँ जगमगाती हैं
चीर कर गमों के अँधेरे को
जिंदगी आज फिर से मुस्कराती है।

धमाका फिर गूंजता है
पर बमों और बंदूकों का नहीं
पटाखों के साथ-साथ
गूंजती है किलकारियाँ भी।
सहमे से मुरझाए होठों पर
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website