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'हर मकान बूढ़ा होता'
कुमार रवीन्द्र
साधो, सच है
जैसे मानुष
धीरे-धीरे हर मकान भी बूढ़ा होता
देह घरों की थक जाती है
बस जाता भीतर अँधियारा
उसके हिरदय नेह-सिंधु जो
वह भी हो जाता है खारा
घर में
जो देवा बसता है
...
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
'अधूरी'
प्रिया एन. अइयर
हर घर में दबी आवाज़ होती है
एक अनसुनी सी
रात में खनखती चूड़ियों की
इक सिसकी सी
...
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
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Basic Structure of Hindi Poetry
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युगवाणी
- 20वी सदी के प्रारम्भ से समकालीन काव्य
नव-कुसुम
- उभरते कवियों की रचनाएँ
काव्य-सेतु
- अन्य भाषाओं के काव्य से जोड़ती हुई रचनाएँ
मुक्तक
- मोती समान पंक्तियों का चयन
प्रतिध्वनि
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