Toggle navigation
English Interface
संग्रह से कोई भी रचना
काव्य विभाग
शिलाधार
युगवाणी
नव-कुसुम
काव्य-सेतु
मुक्तक
प्रतिध्वनि
काव्य लेख
सहयोग दें
अप्रतिम कविताएँ
प्राप्त करें
✉
अप्रतिम कविताएँ
प्राप्त करें
✉
छाता
जिनके सिर ढँकने के लिए
छतें होती हैं
वही रखते हैं छाते
हर बार सोचता हूँ
एक छत का जुगाड़ करुँगा
और लूँगा एक छाता
इस शहर के लोगों के पास
जो छाता है
उसमें कोई एक ही आता है
इसलिए
सोचता हूँ
मैं लूँगा
तो लूँगा आसमान
कि जिसमें सब आ जायें
और बाहर खड़ा भीगता रहे
बस मेरा अकेलापन
बराबर लगता है
छाते
रिश्ते नाते हैं
बरसात में काम आते हैं
और अकसर
छूट जाते हैं !
-
प्रेमरंजन अनिमेष
विषय:
विस्तार (13)
समाज (31)
काव्यालय को प्राप्त: 29 Apr 2025. काव्यालय पर प्रकाशित: 6 Jun 2025
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।
₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
इस महीने :
'एक मनःस्थिति '
शान्ति मेहरोत्रा
कभी-कभी लगता है
जैसे घर की पक्की छत, दीवारें, चौखटें
मेरी गरम साँसों से पिघल कर
मोम-सी बह गई हैं।
केवल ये खिड़कियाँ-दरवाजे जैसे
कभी ..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'खिलौने की चाबी'
नूपुर अशोक
इतनी बार भरी गई है
दुःख, तकलीफ और त्याग की चाबी
कि माँ बन चुकी है एक खिलौना
घूम रही है गोल-गोल
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना
| काव्य विभाग:
शिलाधार
युगवाणी
नव-कुसुम
काव्य-सेतु
|
प्रतिध्वनि
|
काव्य लेख
सम्पर्क करें
|
हमारा परिचय
सहयोग दें