अप्रतिम कविताएँ
गेंद और सूरज
बच्चों की एक दुनिया है,
जिसमें एक गेंद है
और एक सूरज भी है।
सूरज के ढलते ही
रुक जाता है उनका खेल
और तब भी
जब गेंद चली जाती है
अंकल की छत पर।

अंकल की दुनिया में है
टीवी और अखबार,
भय और शक का संसार।
इन सब से बेखबर
बच्चे लगे रहते हैं लगातार
देते हैं उन्हें आवाज़ें बार-बार।
आखिरकार,
जाते हैं वे रिमोट छोड़, ऊपर,
छत का दरवाजा खोल
देते हैं गेंद छत से फेंककर।

सोचती हूँ रोज़ यह नज़ारा देख -
आती रहे यह गेंद
इसी तरह, हर दिन छत पर।
कभी तो किसी दिन
वे खुद चले आएंगे उतरकर
गेंद के साथ ज़मीन पर
बच्चों वाली दुनिया में,
जहाँ एक गेंद है
और एक सूरज भी है।
- नूपुर अशोक

काव्यालय को प्राप्त: 6 Jun 2021. काव्यालय पर प्रकाशित: 23 Jul 2021

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सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।

छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
..

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..

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मनोरम गांवों के !!

..

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