Toggle navigation
English Interface
संग्रह से कोई भी रचना
काव्य विभाग
शिलाधार
युगवाणी
नव-कुसुम
काव्य-सेतु
मुक्तक
प्रतिध्वनि
काव्य लेख
सहयोग दें
अप्रतिम कविताएँ
प्राप्त करें
✉
अप्रतिम कविताएँ
प्राप्त करें
✉
प्रेम गाथा
एक था काले मुँह का बंदर
वह बंदर था बड़ा सिकंदर।
उसकी दोस्त थी एक छुछुंदर
वह थी चांद सरीखी सुंदर।
दोनो गये बाग़ के अंदर
उन्होंने खाया एक चुकंदर।
वहाँ खड़ा था एक मुछंदर
वह था पूरा मस्त कलंदर।
उसने मारा ऐसा मंतर
बाग़ बन गया एक समुंदर।
उसमें आया बड़ा बवंडर
पानी में बह गया मुछंदर।
एक डाल पर लटका बंदर
बंदर पर चढ़ गयी छ्छुंदर।
इतनी ज़ोर से कूदा बंदर
वे दोनो आ गये जलंधर।
ता-तेइ करके नाचा बदंर
कथक करने लगी छछुंदर।
ऐसे दोनो दोस्त धुरंधर
हँसते गाते रहे निरंतर।
-
विनोद तिवारी
काव्य संकलन
समर्पित सत्य समर्पित स्वप्न
विषय:
बाल कविता (10)
काव्यालय को प्राप्त: 1 Jan 2013. काव्यालय पर प्रकाशित: 20 Apr 2018
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।
₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
विनोद तिवारी
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ
एक विश्वास
ऐसी लगती हो
जीवन दीप
दुर्गा वन्दना
प्यार का नाता
प्रवासी गीत
प्रेम गाथा
मेरी कविता
मेरे मधुवन
यादगारों के साये
इस महीने :
'सबसे ताक़तवर'
आशीष क़ुरैशी ‘माहिद’
जब आप कुछ नहीं कर सकते
तो कर सकते हैं वो
जो सबसे ताक़तवर है
तूफ़ान का धागा
दरिया का तिनका
दूर पहाड़ पर जलता दिया
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'हादसे के बाद की दीपावली'
गीता दूबे
रौशनी से नहाए इस शहर में
खुशियों की लड़ियाँ जगमगाती हैं
चीर कर गमों के अँधेरे को
जिंदगी आज फिर से मुस्कराती है।
धमाका फिर गूंजता है
पर बमों और बंदूकों का नहीं
पटाखों के साथ-साथ
गूंजती है किलकारियाँ भी।
सहमे से मुरझाए होठों पर
..
पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना
| काव्य विभाग:
शिलाधार
युगवाणी
नव-कुसुम
काव्य-सेतु
|
प्रतिध्वनि
|
काव्य लेख
सम्पर्क करें
|
हमारा परिचय
सहयोग दें