काव्यालय के आँकड़े
जून 2018 – जून 2019

वाणी मुरारका, विनोद तिवारी
(सम्पादक, काव्यालय)

यह हमारी दूसरी वार्षिक रिपोर्ट है| यूँ तो काव्यालय 22 वर्षों का जवान है किन्तु पिछले वर्ष ही हमने काव्यालय की पहली वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी। काव्यालय हमारा व्यक्तिगत गैर-लाभकारी उद्यम है, किन्तु काव्यालय सिर्फ़ हमारा नहीं है। आपका भी है। आप ही से है। आप अभूतपूर्व कविताएँ रचते हैं, काव्य के सौन्दर्य का रसास्वादन करते हैं, इस उद्यम में हमें सहयोग देते हैं, तभी काव्यालय है। तो इस रिपोर्ट के द्वारा आपके संग काव्यालय के परदे के पीछे की कुछ झलकियाँ साझा करना हमारा हर्ष भी है और कर्तव्य भी।

काव्यालय में जून 2018 से जून 2019 के बीच कविता ने अपने कवियों, पाठकों, सहयोगीयों के संग कैसे जिया? रचनाओं का स्रोत क्या रहा, कितने लोग काव्यालय पढ़ते हैं, आपसे प्राप्त सहयोग और काव्यालय का इस साल का खर्च – यह सब साझा करने के पहले एक सवाल जो अक्सर हमें पूछा जाता है, “काव्यालय पर रचना प्रकाशन की क्या प्रक्रिया है?” उसका उत्तर दे दें, और 8 वर्षों से चला आ रहा एक प्यारा ग्रुप, काव्यालय कुटुम्ब, के विषय में बता दें।

कविता चुनाव की प्रक्रिया

काव्यालय पर बहुत कम कविताएँ प्रकाशित होती हैं, मगर ऐसी जिनमे डूबा जा सके। पढ़ने के बाद जो कविता हमें बार बार याद आए, कुछ हफ़्तों या महीनों तक भी, वह हम पाठकों के साथ साझा करना पसन्द करते हैं। रचनाकार अपनी रचना यहाँ दर्ज कर सकते हैं। फिर चुनाव की यह प्रक्रिया है --


तो यह काव्यालय कुटुम्ब क्या है?

काव्यालय कुटुम्ब

2011 में फ़ेसबुक में हमने ऐसे ही कविता की चर्चा के लिए एक ग्रुप बनाया। ग्रुप में क्या होना चाहिए, क्या होगा, उस समय कुछ ज्यादा विचार नहीं किया। बस यूँ ही, “देखते हैं,” सोच कर ग्रुप बना दिया। बिना हमारे किसी निरीक्षण के, बिना किसी परिश्रम के, कुछ सदस्यों ने ग्रुप में यूँ जान फूँक दी कि ग्रुप कुटुम्ब बन गया – काव्यालय कुटुम्ब।

आज काव्यालय कुटुम्ब जो भी है, अपने सदस्यों की वजह से है – जहाँ सभी सदस्य परस्पर आदर और मित्रता सहित काव्य की ऊर्जा में और गहराई में डूबते हैं। ग्रुप में गतिविधियाँ बढ़ीं तो और संचालन की ज़रूरत हुई। पहले राजु पटेल ने संचालन में हमारा सहयोग दिया। फिर राजु के साथ साथ शिखा गुप्ता ने। राजु ने ग्रुप में एक नायाब वार्षिक उत्सव की परम्परा स्थापित की जो अब इस कुटुम्ब की जान है।

फिर प्रदीप शुक्ला ने संचालन में सहयोग दिया। उन्होंने ग्रुप में “भाषा उत्सव” की स्थापना की। इस वर्ष पारुल पंखुरी ग्रुप की मॉडरेटर हैं।


राजु पटेल

शिखा गुप्ता

प्रदीप शुक्ला

पारुल पंखुरी

यहाँ हम रचनाकारोँ की कई कविताएँ पढ़ पाते हैं| उनकी शैली से परिचित हो पाते हैं| समय के साथ उनकी लेखनी कैसे विकसित हो रही है, यह देख पाते हैं। इस सब से काव्यालय के व्यक्तित्व और उद्देश्य के अनुकूल काव्यालय पर प्रकाशन के लिए रचना चुन पाते हैं। काव्यालय पर प्रकाशित कई कविताओं का स्रोत काव्यालय कुटुम्ब है। जैसे कि गोपाल गुंजन, नीरज नीर, फाल्गुनी राय, विनीत मिश्रा, सुदर्शन शर्मा इत्यादि काव्यालय कुटुम्ब के द्वारा ही काव्यालय पर प्रकाशित हुए। कभी कभी वरिष्ठ प्रतिष्ठित कवि भी हमारे संग सम्मिलित होकर ग्रुप को गरिमा प्रदान करते हैं।

इस ग्रुप की सदस्यता के दो रास्ते हैं:

  1. कुटुम्ब का कोई मौजूदा सदस्य आपकी सदस्यता प्रस्तावित करे।
  2. हम आपको सदस्य बनने के लिए आमन्त्रित करें।

हालांकि काव्यालय कुटुम्ब और काव्यालय सम्बन्धित हैं, वे दो अलग संस्थाएँ हैं। इतने वर्षों में पहली बार हम काव्यालय के पाठकों को इस ग्रुप के विषय में बता रहे हैं। आप जब अपनी रचना प्रकाशन हेतु यहाँ हमें भेजते हैं, कई बार वह रचना हम काव्यालय पर प्रकाशन के लिए चुन नहीं पाते हैं, परन्तु जब ऐसा लगता है कि आपको और पढ़ें, आगे आपकी अन्य कोई रचना हम प्रकाशित कर सकें तो आपको काव्यालय कुटुम्ब की सदस्यता का आमन्त्रण देते हैं।

इस साल की प्रस्तुति

जून 2018 – जून 2019 के अवधि में हमारी कुल 36 प्रस्तुतियों के स्रोत और प्रकार यह थे। लिंक पर क्लिक करके आप उनकी सूची देख सकते हैं, उन रचनाओं का पुन: रसास्वादन कर सकते हैं।

काव्यालय की प्रस्तुतियाँ पाने यहाँ ईमेल दर्ज करें

कुल प्रस्तुति 36

प्रस्तुति के स्रोत

प्रस्तुतियों के प्रकार

काव्यालय के पाठक

काव्यालय की प्रस्तुतियाँ करीबन 1600 पाठकों को ईमेल पर नियमित भेजी जाती हैं। ईमेल ही हमारा सम्प्रेषण का मुख्य माध्यम है। इस साल की प्रस्तुतियों का ईमेल पर यह रीडरशिप रहा –

जो लगातार हमारे कई ईमेल नहीं खोलते हैं उनका आयडी सब्स्क्राइबर सूची से हटा दिया जाता है। काव्यालय की प्रस्तुति ईमेल में पाने, यहाँ ईमेल दर्ज करें

यह है वेबसाइट पर आगन्तुकों के आँखड़े --

आपका सहयोग और काव्यालय का खर्च

पिछले वर्ष की कमी देख कर काव्यालय के पाठक जोगेन्द्र सिंह जी ने काव्यालय को ₹5,000 उपहार दिया। इसके लिए हम उनके बहुत आभारी हैं। उनकी यह उदारता काव्यालय के प्रति उनके स्नेह और सम्मान का द्योतक है। अन्य कई पाठकों ने भी योगदान दिया। आप सभी को धन्यवाद। आपके सहयोग से व्यावहारिक ऊर्जा तो मिलती ही है, साथ ही यह विश्वास होता है कि नि:सन्देह काव्यकला का पोषक तत्व कई पाठकों तक पहुँच सकता है।

इस वर्ष (13 महीने)

सहयोग देने वाले पाठकगण 31

खर्च आय
प्रस्तुति भेजने का खर्च ₹ 25,080 प्राप्त सहयोग ₹ 22,000
वेब होस्टिंग ₹ 3,080 एमज़ॉन से कमिशन ₹ 1,000
कमी ₹ 5,160
कुल ₹ 28,160कुल₹ 28,160

रचनाओं का मूल्य, काव्यालय के सम्पादन में लगे वक्त, तकनीकी मेहनत का मूल्य नहीं जोड़ा गया है। सभी रचनाकार हमें नि:शुल्क अपनी प्रतिभा का उपहार देते हैं। काव्यालय कुटुम्ब के संचालन का कार्य भी नि:शुल्क है।

हमारा उद्देश्य है कि सौन्दर्य के द्वारा, एक व्यापक विस्तृत आयाम का आभास हो। मीडिया और इन्टरनेट के शोर के बीच शान्ति और सुकून की सरिता बहे। यह अलौकिक अनुभूति और कई मित्रों तक पहुँचे। और यह सब विज्ञापनों के विकर्षण के बिना हो।

इस उद्देश्य को ऊर्जा देने के लिये कृपया सहयोग दें –

एक तकनीकी विकास

मुद्रित प्रकाशनों की सफलता में मुद्रण तकनीक की प्रमुख भूमिका होती है। काव्यालय के अस्तित्व में वेबसाइट तकनीक की प्रमुख भूमिका है। इस साल काव्यालय की वेबसाइट तकनीक में एक महत्वपूर्ण विकास हुआ।

वेबसाइट को किसी सर्वर पर होस्ट करना होता है जिससे वह विश्वभर में उप्लब्ध हो -- यह तो अब आम जानकारी है। वर्षों से चला आ रहा वेब होस्टिंग का आम तरीका है "shared hosting". 2018-19 में काव्यालय ने शेर्ड होस्टिंग का तकनीक छोड़ "cloud hosting" की दुनिया में प्रवेश किया। अब काव्यालय का 'मकान' Digital Ocean नामक सेवा पर खड़ा है। यह काव्यालय की अन्दरूनी तकनीकी इतिहास में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।

इस परिवर्तन से काव्यालय वेबसाइट के रखरखाव में दो बड़े लाभ हुए हैं --
1. वेबसाइट की तकनीकी फाइलें और जल्दी सर्वर पर जाती हैं, और इसमें कम ग़लतियाँ होती हैं।
2. क्लाउड होस्टिंग के द्वारा काव्यालय का अब अपना पूरा (dedicated virtual) सर्वर है, मगर खर्च शेयर्ड होस्टिंग जैसा ही है। इससे नए तकनीकों के प्रयोग में, उन्हें वेबसाइट में शामिल करने में और आसानी हो गई है।

कई दिनों तक कोडिंग व ट्रायल-एरर के बाद जब यह परिवर्तन आखिर सम्भव हुआ, हमें बहुत बहुत खुशी हुई थी, तो सोचा चलते चलते यह तकनीकी खुशी भी आपके संग बाँट लें।

प्रकाशित: 9 अगस्त 2019


Topic:
Editorial (9)
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'Tumhaare Saath Rahkar'
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tumhaare saath rahakar
aksar mujhe aisaa mahasoos huaa hai
ki dishaae(n) paas aa gayee hain,
har raastaa chhoTaa ho gayaa hai,
duniyaa simaTakar
ek aa(n)gan-see ban gayee hai
jo khachaakhach bharaa hai,
kaheen bhee ekaant naheen
n baahar, n bheetar.

har cheez kaa aakaar ghaT gayaa hai,
peḌ itane
..

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kabhee-kabhee jeevan koee ghoShaNaa naheen karataa—
vah bas bahataa hai,
jaise koee puraanaa raag,
dheere-dheere aatmaa men utarataa huaa,
binaa shor, binaa aagrah.

hamaare saath ke tees varSh poorN hue hain.
kabhee lagataa hai hamane samay ko jiyaa,
kabhee lagataa hai samay ne hamen taraashaa.
yah saath keval varSh naheen the—
yah do aatmaaon kaa maun sanvaad thaa,
jo shabdon se pare,
par bhaavon se bharapoor rahaa.

jab hamane saath chalanaa shuroo kiyaa,
tum the svapnadraShTaa—
shabdon ke jaadoogar,
bhaviShy ke rangeen rekhaachitron men Doobe hue.
aur main…
main thee vah zameen
..

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tum to pahale aise n the
raat biraat aaoge
der saver aaoge...
ham neend men rahen
aa(n)kh naa khule
to rooTh jaaoge...

svapn men aaoge
divaasvapn dikhaaoge
ham kalam uThaae(n)ge
to chhip jaaoge...

bechainiyon kaa kabhee
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1.
prem kavitaa, kahaaniyaa(n) aur ph़ilmen
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main gayaa hoo(n) usake paar
kaee baar.
ik ajeeb-see bechainee hotee hai vahaa(n)
jee karataa hai thaam loo(n) koee cheej
koee haath, koee sahaaraa.
main Tik naheen paataa vahaa(n) der tak.

suno,
abase
..

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