काव्यालय के आँकड़े
जून 2017 से मई 2018

वाणी मुरारका, विनोद तिवारी
(सम्पादक, काव्यालय)

काव्यालय की स्थापना 1997 में हुई थी जब इंटरनेट पर यह अपने किसम का एकमात्र वेबसाइट था। कई वर्षों तक काव्यालय एक हॉबी की तरह चला। हमारे अन्य कार्यों के बीच यदा कदा जब मन करता, हम काव्यालय को भी किसी रचना से सजा देते। अब उत्तरोत्तर काव्यालय का रंग गहरा रहा है| हम नियमित रूप से काव्यालय के पाठकों के संग काव्य का रसास्वादन करते हैं और चाहते हैं कि अधिक से अधिक रसिक हमारे संग सम्मिलित हों।

इसी उद्देश्य से प्रस्तुत है काव्यालय के कुछ आँकड़े, काव्यालय के प्रकाशन व संचालन की कुछ झलकियाँ। कितने लोग काव्यालय की प्रस्तुति पढ़ते हैं? कितनों ने अपनी रचनाएँ काव्यालय को भेजी, कितनी चुनी गई? आपसे प्राप्त आर्थिक सहयोग और काव्यालय के खर्च। यह जानकारी संक्षिप्त में प्रस्तुत है ताकि आप काव्यालय से कवि, पाठक, व सहयोगी के रूप में कुछ और जुड़ सकें। यह सभी आँकड़े जून 2017 से मई 2018 की है।

कविता और कवि: प्राप्त रचनाएँ और प्रकाशन के आँकड़े

हमारी कोशिश यह रहती है कि आपके संग वह रचना साझा करें जो हमारे अपने मन में कुछ हफ़्तों स्पन्दित होती रहे। अत: हम आपके संग बहुत कम, मगर महीने में कम से कम दो रचनाएँ साझा करते हैं । हमें लगता है कि कविता का रसास्वादन तब निखरता है जब बस एक कोई कविता पाठक के मन में समा जाए — मन में गूँजती रहे। कविता नए नए अर्थ खोलती रहे या एक ही अनुभूति को गहराती रहे ताकि शब्द शेष न रहें, बस उस अनुभूति का निस्तब्ध गहरा विस्तार रहे।

कुछ रचनाएँ हमें रचनाकार से प्राप्त होती हैं, कुछ हम ढूँढते हैं।

कितनी रचनाएँ प्राप्त हुईं, कितनी चुनी गईं

काव्यालय का एक स्व-रचित कविता सबमिशन सॉफ़्टवेयर है, जिसके तहत रचनाकार अपनी तीन रचनाएँ हमें प्रकाशन के लिए भेज सकते हैं।

जून 2017 से मई 2018 के दौरान रचना भेजने वाले रचनाकार: 134

प्राप्त रचनाएँ:296
अस्वीकृत:268
विचाराधीन:12
सम्पादकों ने अभी पढ़ी नहीं है:9
काव्यालय में प्रकाशित:7
स्वीकृति प्रतिशत:2.3%

काव्यालय के अन्य स्रोत क्या हैं

रचनाकारों से प्राप्त रचनाओं के अतिरिक्त हम प्रकाशित साहित्य में और ऑनलाइन भी कविताएँ ढूँढते हैं। रस चाहे जो भी हो, अभिव्यक्ति में एक निहित सौन्दर्य हो जो पाठक को विस्तृत आयाम की ओर ले जाए। कभी कभी काव्य सम्बन्धित कोई लेख और कविताओं का ऑडियो भी प्रस्तुत किया जाता है।

इस रिपोर्ट की अवधि के दौरान हमने आपके संग साझा कीं –

कविताएँ:25
काव्य लेख:3
28

जिनका स्रोत इस प्रकार है –

रचनाकारों से प्राप्त:7
फ़ेसबुक से, कवि के वॉल पर, किसी ग्रुप में:3
प्रकाशित साहित्य से:2
सम्पादकों की रचना व लेख:5
काव्यालय के पुराने संग्रह से:11
28

कविता और पाठक: कितने लोग काव्यालय पढ़ते हैं

ईमेल के पाठक

काव्यालय के मुख्य नियमित पाठक ईमेल पर हमारी प्रस्तुति पाते हैं। इन ईमेल में रचना के अतिरिक्त उसपर और उसकी काव्य कला पर सम्पाद का संक्षिप्त प्राक्कथन भी होता है जो वेबसाइट पर नहीं होता। ईमेल आधुनिक युग का पत्राचार है, अत: ईमेल में चुनी हुई रचना पाने का खास रस, खास आत्मीयता होती है। पसन्द आई रचनाओं को पाठक अपने पास सुरक्षित भी रख सकते हैं।

इस वक्त हमारे 1800 ईमेल सब्सक्राइबर हैं।

जो निष्क्रिय पाठक हैं, जैसे कि जिन्होंने छह महीने तक हमारा कोई ईमेल नहीं खोला हो, उनका आयडी सूची से हटा दिया जाता है।

पिछले महीनों में हमारे नियमित पाठकों की संख्या लगातार बढ़ रही है – वे रसिक जो न सिर्फ़ हमारा ईमेल पाते हैं, पर उसे खोलते भी हैं –

जो सब्सक्राइबर काव्यालय का लगभग हर ईमेल खोलते हैं: 230 (कुल सब्सक्राइबर के 12%)

जो सब्सक्राइबर प्रायः काव्यालय का ईमेल खोलते हैं: 434 (कुल सब्सक्राइबर के 24%)

वेबसाइट पर आगंतुक

वेबसाइट पर आगंतुकों की संख्या जून 2017 से मई 2018 तक इस प्रकार है

नए और लौटते आगंतुक: जून 2017 – मई 2018 के दौरान

नए आगंतुक6,72,863
लौटते आगंतुक97,571

कविता और सहयोगी: प्राप्त आर्थिक सहयोग और हमारे खर्च

काव्यालय हमारा स्वान्तः सुखाय उद्यम रहा है। अत: उसपर हुए आर्थिक व समय का खर्च हमारा नीजी खर्च रहा है।

काव्यालय के पाठक बढ़ रहे हैं और हमारा प्रयास है कि काव्यालय के द्वार सभी के लिए खुले रहें। इसलिए पिछले नवम्बर 2017 से हमने पहली बार पाठकों से आर्थिक सहयोग माँगना आरम्भ किया है। आपके आर्थिक सहयोग के द्वारा आप कई अनजान दोस्तों के संग काव्यालय का रस बाँटते हैं।

जिन दोस्तों ने हमें सहयोग दिया है, आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद।

नवम्बर 2017 से मई 2018, 7 महीनों में आपसे प्राप्त सहयोग और काव्यालय का खर्च इस प्रकार है –

सहयोग देने वाले पाठकगण:20
प्राप्त सहयोग:₹ 7,000
काव्यालय के खर्च:₹ 12,000
कमी:₹ 5,000

खर्च में मुख्यत: ईमेल सब्स्क्राइबरों को काव्यालय की प्रस्तुति भेजना शामिल है। रचनाओं का मूल्य, काव्यालय के सम्पादन में लगे वक्त, तकनीकी मेहनत व सर्वर का मूल्य नहीं जोड़ा गया है। सभी कवि और ऑडियो के काव्य वाचक हमें नि:शुल्क अपनी प्रतिभा का उपहार देते हैं। काव्यालय टीम में अभी हम दो लोग हैं और फ़ेसबुक पर एक मित्र जो हमारे साथ हैं। मगर आगे हमें किसी को वेतन पर भी हमारे टीम में शामिल करना पड़ सकता है। कवियों व अन्य कलाकारों को भी अपने सृजन का कुछ आर्थिक पारितोषिक मिले तो काव्य कला को और ऊर्जा मिले। आखिर काव्यालय जो भी है कवियों की अनुपम रचनाओं के कारण है।

आपको यदि काव्यालय की प्रस्तुति पसन्द आती हैं तो अनुरोध है कि सहयोग प्रदान करें –

तो यह थी आँकड़ों में काव्यालय की एक वर्ष की यात्रा वृत्तानत। काव्यालय हमारे लिए केवल एक वेब पेज या प्रकाशन का माध्यम नहीं है। यह हमारे अंतरतम की अनुभूति है। काव्य या किसी भी ललित कला में अपनी एक दिव्य शक्ति होती है। उसकी गोद में हर रस, हमारी हर भावना स्वीकृत हो हमें दिव्यता की ओर ले जाने की क्षमता रखती है। इनका रसास्वादन मानव को एक अलौकिक वरदान है। हमें विश्वास है कि कई वर्षों तक काव्यालय के द्वारा हम सब मिलकर इस वरदान में उतराते रहेंगे और यह सुहानी यात्रा चलती रहेगी।

आंकड़े ये हैं सुनाते,
काव्यालय की कहानी।
एक पथ के पथिक हम तुम,
यात्रा कितनी सुहानी।

प्रकाशित: 27 जुलाई 2018


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इस महीने :
'दिव्य'
गेटे


अनुवाद ~ प्रियदर्शन

नेक बने मनुष्य
उदार और भला;
क्योंकि यही एक चीज़ है
जो उसे अलग करती है
उन सभी जीवित प्राणियों से
जिन्हें हम जानते हैं।

स्वागत है अपनी...

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
होलोकॉस्ट में एक कविता
~ प्रियदर्शन

लेकिन इस कंकाल सी लड़की के भीतर एक कविता बची हुई थी-- मनुष्य के विवेक पर आस्था रखने वाली एक कविता। वह देख रही थी कि अमेरिकी सैनिक वहाँ पहुँच रहे हैं। इनमें सबसे आगे कर्ट क्लाइन था। उसने उससे पूछा कि वह जर्मन या अंग्रेजी कुछ बोल सकती है? गर्डा बताती है कि वह 'ज्यू' है। कर्ट क्लाइन बताता है कि वह भी 'ज्यू' है। लेकिन उसे सबसे ज़्यादा यह बात हैरानी में डालती है कि इसके बाद गर्डा जर्मन कवि गेटे (Goethe) की कविता 'डिवाइन' की एक पंक्ति बोलती है...

पूरा काव्य लेख पढ़ने यहाँ क्लिक करें
राष्ट्र वसन्त
रामदयाल पाण्डेय

पिकी पुकारती रही, पुकारते धरा-गगन;
मगर कहीं रुके नहीं वसन्त के चपल चरण।

असंख्य काँपते नयन लिये विपिन हुआ विकल;
असंख्य बाहु हैं विकल, कि प्राण हैं रहे मचल;
असंख्य कंठ खोलकर 'कुहू कुहू' पुकारती;
वियोगिनी वसन्त की...

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