छोटी, प्यारी, मगर मुक्त है क्या?
काव्य शिल्प और मुक्त उड़ान के कुछ आधार

वाणी मुरारका


किसी कमाल हायकू का सा असर है, केदारनाथ अग्रवाल की इस छोटी सी रचना में। पर यह हायकू नहीं है। शायद सरल साधारण मुक्त कविता है?

अच्छा विधा की बात बाद में करेंगे, पहले रचना का रसास्वादन तो करें!


आज नदी बिलकुल उदास थी।
सोयी थी अपने पानी में,
उसके दर्पण पर -
बादल का वस्त्र पड़ा था।
मैंने उसे नहीं जगाया,
दबे पाँव घर वापस आया।

~ केदारनाथ अग्रवाल


हुआ न असर? इतने से शब्द में एक स्पष्ट चित्र खिंच गया, और चित्र एक विस्तृत एहसास में बदल गया। एक पल, अनन्त की गहराई लिए ― ठीक वैसे जैसे एक माहिर कवि की हायकू अपनी डिबिया में छिपाए रखती है। पर यह हायकू नहीं है!

"वाणी, यह क्या हो गया है आपको? यह तो सभी को दिख रहा है कि यह हायकू नहीं है।"

ओह! तो क्या यह बस एक मुक्त कविता है? कवि ने अपनी बात कह दी और बस किसी चमत्कार से हम पर असर हो गया?

"जी 'गागर में सागर' कहते हैं हमारे यहाँ। बाकि हमें क्या करना कि यह 'क्या' कविता है! यह कवियों का होता है कुछ — 'अन्दाज़े-बयां' वगैरह..."

कुछ तो रहस्य है। कैसे हो जाता है असर? क्या है यह चमत्कार? मेरा मन कह रहा है, कुछ तो है जिसके कारण यह पंक्तियाँ मुझे खींच लेती हैं। बस "अन्दाज़े-बयां" नहीं है।
 

आह! गीत गतिरूप ने कुछ नक़ाब हटाए! इन पंक्तियों में एक अदृश्य लय छिपी है। इसी के स्पन्दन से यह पंक्तियाँ अप्रत्यक्ष मेरे मन में प्रतिध्वनित हो रही हैं।

सोलह मात्राओं की लय – काव्य, संगीत, नृत्य में सबसे ज्यादा प्रयोग की जाती है। तबला पर इसे “तीनताल” कहते हैं। हमारा मन बड़ी सहजता से इसे ग्रहण कर लेता है। कभी कभी तो हमें पता भी नहीं चलता कि वह हममें गूंज रहा है, जैसे कि इस रचना में।

यहाँ पहली चार पंक्तियों में कोई तुक भी नहीं, और बीच में तो लय काफी टूट भी रही है — इसी से रचना छन्द बद्ध नियमों से मुक्त लगती है। लगता है कवि ने बस अपनी बात कह दी — बात सुन्दर है, दृश्य सुन्दर है, तो हो गया असर।

पर कवि ने बस ऐसे ही नहीं कह दिया। इस मुक्त उड़ान का भी आधार है। लय पाठक के मन में अनुभूति को प्रतिध्वनित करने की, पंक्तियों को प्रवाह देने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जो पंक्तियाँ लय में हैं, उनका तो हमारे अवचेतन पर असर हो ही रहा है — बीच में जहाँ लय टूट रही है, सोलह मात्रा के छंद में से, आठ मात्रा, अर्थात आधी पंक्ति गायब हैं, उसका भी खास असर है। पहली बात 16 से ठीक आधा, 8 मात्रा गायब है, 3 नहीं, 6 या 7 नहीं। पढ़ने के दौरान स्वाभाविक रूप से वहाँ कुछ खाली खाली सा रह जाता है। इस आधी अदृश्य पंक्ति में कवि मौन को भी स्पष्ट आसन दे रहा है और हमें पता नहीं चलता मगर उस मौन से निहित एहसास और गहरा जाता है।

यह छंद टूटी पंक्तियों में कवि ने अगली पंक्ति कहाँ शूरु की है, उसके भी अर्थ हैं। पहली पंक्ति “उसके दर्पण पर” के बाद पाठक स्वाभाविक रूप से दो क्षण रुकता है, नदी के दर्पण को आत्मसात करता है, फिर “बादल का वस्त्र पड़ा था” से अगली बात, अगला दृश्य, अगली अनुभूति प्रस्तुत की जाती है। अगर हम सजग होकर पंक्तियों को ग्रहण करेंगे, तो मन के अन्दर यह क्रिया छोटे से चलचित्र के जैसे घटती नज़र आएगी।

काव्य में लय, प्रवाह की महत्वपूर्ण भूमिका है, मगर सिर्फ़ वह ही सबकुछ नहीं है। सिर्फ़ लय पर ध्यान दें तो कवि शब्दों को इस प्रकार सजा सकता था

उसके दर्पण
पर बादल का
वस्त्र पड़ा था

इस प्रकार से बात ठिठक कर पाठक तक पँहुचती है, अनुभूति और दृश्य गायब हो जाते हैं। हर पंक्ति का अपने में कोई अर्थ नहीं रह जाता है।

जैसे शिल्पकार पत्थर तराशता है, कवि व गीतकार समय तो तराश कर उसमें शब्दों को जड़ देता है। उद्देश्य - अनुभूति का सम्प्रेषण जो पाठक के मन में सुगन्ध की तरह फैल जाए। लोग कहते हैं कविता तो भावना की मुक्त धारा है, उसे बस बहने दो। हाँ, ज़रूर, पहले ड्राफ़्ट में बस लिख डालो जो भी शब्द बह रहे हैं। पर फिर वह अभिव्यक्ति पाठक के हृदय में भी सहज स्पन्दित होती है कि नहीं यह शिल्प की बात है। विधा चाहे जो भी हो, रचना चाहे जितनी भी लम्बी या छोटी हो। पहली बार में जो लिख दिया वही कविता नहीं बन जाती। कवि अपने पहले ड्राफ़्ट को शिल्प के नज़रिए से बार बार तराशता है, जबतक कि हर शब्द को स्पष्ट आसन न मिल जाए, जबतक कि सभी अतिरिक्त शब्दों को झाड़ कर हटा न दिया जाए। तब रचना उभर कर बाहर आती है।

***

लेख में चित्र और मात्रा गणना गीत गतिरूप के द्वारा किया गया है। गीत गतिरूप कवि को अपनी कविताओं का शिल्प तराशने में मदद करता है।

मुक्त कविता की उड़ान पर आप भी अपना अनुभव साझा करें, कवि के जैसे भी, और पाठक के जैसे भी। कोई कविता आपपर क्यों असर करती है उसपर अपने विचार नीचे कमेन्ट में साझा करें।

24 नवम्बर 2017
21 दिसम्बर 2019 को नवीनतम गीत गतिरूप के अनुसार चित्र बदले गए


***
Vani Murarka
's other poems on Kaavyaalaya

 Agar Suno To
 Adhooree Saadhanaa
 Gahraa Aangan
 Chup See Lagee Hai
 Jal Kar De
 Desh Kee Naagarik
 Dheere-dheere
 Shahar Kee Diwali Par Amaavas Kaa Aahvaan
This Month :
'Divya'
Goethe


Translated by ~ Priyadarshan

nek bane manuShy
udaar aur bhalaa;
kyonki yahee ek cheej़ hai
jo use alag karatee hai
un sabhee jeevit praaNiyon se
jinhen ham jaanate hain.

svaagat hai apnee...
..

Read and listen here...
होलोकॉस्ट में एक कविता
~ प्रियदर्शन

लेकिन इस कंकाल सी लड़की के भीतर एक कविता बची हुई थी-- मनुष्य के विवेक पर आस्था रखने वाली एक कविता। वह देख रही थी कि अमेरिकी सैनिक वहाँ पहुँच रहे हैं। इनमें सबसे आगे कर्ट क्लाइन था। उसने उससे पूछा कि वह जर्मन या अंग्रेजी कुछ बोल सकती है? गर्डा बताती है कि वह 'ज्यू' है। कर्ट क्लाइन बताता है कि वह भी 'ज्यू' है। लेकिन उसे सबसे ज़्यादा यह बात हैरानी में डालती है कि इसके बाद गर्डा जर्मन कवि गेटे (Goethe) की कविता 'डिवाइन' की एक पंक्ति बोलती है...

पूरा काव्य लेख पढ़ने यहाँ क्लिक करें
राष्ट्र वसन्त
रामदयाल पाण्डेय

पिकी पुकारती रही, पुकारते धरा-गगन;
मगर कहीं रुके नहीं वसन्त के चपल चरण।

असंख्य काँपते नयन लिये विपिन हुआ विकल;
असंख्य बाहु हैं विकल, कि प्राण हैं रहे मचल;
असंख्य कंठ खोलकर 'कुहू कुहू' पुकारती;
वियोगिनी वसन्त की...

पूरी कविता देखने और सुनने इस लिंक पर क्लिक करें
संग्रह से कोई भी कविता | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेखहमारा परिचय | सम्पर्क करें

a  MANASKRITI  website