भीतर शिखरों पर रहना है
ख़्वाब देखकर सच करना है
ऊपर ही ऊपर चढ़ना है,
जीवन वृहत्त कैनवास है
सुंदर सहज रंग भरना है!
साथ चल रहा कोई निशदिन
हो अर्पित उसको कहना है,
इक विराट कुटुंब है दुनिया
सबसे मिलजुल कर रहना है!
ताजी-खिली रहे मन कलिका
नदिया सा हर क्षण बहना है,
घाटी, पर्वत, घर या बीहड़
भीतर शिखरों पर रहना है!
वर्तुल में ही बहते-बहते
मुक्ति का सम्मन पढ़ना है,
फेंक भूत का गठ्ठर सिर से
हर पल का स्वागत करना है!
जुड़े ऊर्जा से नित रहकर
अंतर घट में सुख भरना है,
छलक-छलक जाएगा जब वह
निर्मल निर्झर सा झरना है!
वृहत्त : बहुत बड़ा। वर्तुल : गोल आकार। सम्मन : आह्वान पत्र। भूत : बीता हुआ
काव्यालय को प्राप्त: 12 Jul 2022.
काव्यालय पर प्रकाशित: 2 Sep 2022
इस महीने :
'तोंद'
प्रदीप शुक्ला
कहते हैं सब लोग तोंद एक रोग बड़ा है
तोंद घटाएँ सभी चलन यह खूब चला है।
पर मानो यदि बात तोंद क्यों करनी कम है
सुख शान्ति सम्मान दायिनी तोंद में दम है।
औरों की क्या कहूं, मैं अपनी बात बताता
बचपन से ही रहा तोंद से सुखमय नाता।
जिससे भी की बात, अदब आँखों में पाया
नाम न लें गुरु, यार, मैं पंडित 'जी' कहलाया।
आज भी ऑफिस तक में तोंद से मान है मिलता
कितना भी हो बॉस शीर्ष, शुक्ला 'जी' कहता।
मान का यह
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