अप्रतिम कविताएँ
365 सिक्के

तीन सौ पैंसठ
सिक्के थे गुल्लक में
कुछ से मुस्कुराहटें खरीदीं
कुछ से दर्द,
कुछ से राहतें,
कुछ खर्चे खींचातानी में
कुछ रूठने मनाने में,
कुछ दे दिए दूसरों की
मुस्कान के लिए,
कुछ खोटे सिक्के
भी थे उसमें,
बाँध के रख लिया उन्हें
आँचल के कोने में
बीते साल की निशानी की
पहचान के लिए।
- पारुल 'पंखुरी'
Parul 'Pankhuri'
Email : [email protected]

काव्यालय को प्राप्त: 2 Feb 2025. काव्यालय पर प्रकाशित: 19 Dec 2025

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
पारुल 'पंखुरी'
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ

 365 सिक्के
 कविता उम्मीद से है
 चीख
इस महीने :
'चाँद के साथ-साथ'
चेतन कश्यप


पेड़ों के झुरमुट से
झाँकता
चाँद पूनम का
बिल्डिंगों की ओट में
चलता है साथ-साथ
भर रास्ते

पहुँचा के घर
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
इस महीने :
'सबसे ताक़तवर'
आशीष क़ुरैशी ‘माहिद’


जब आप कुछ नहीं कर सकते
तो कर सकते हैं वो
जो सबसे ताक़तवर है

तूफ़ान का धागा
दरिया का तिनका
दूर पहाड़ पर जलता दिया

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website