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रोशनी
रात, हर रात बहुत देर गए,
तेरी खिड़की से, रोशनी छनकर,
मेरे कमरे के दरो-दीवारों पर,
जैसे दस्तक सी दिया करती है।
मैं खोल देता हूँ चुपचाप किवाड़,
रोशनी पे सवार तेरी परछाई,
मेरे कमरे में उतर आती है,
सो जाती है मेरे साथ मेरे बिस्तर पर।
-
मधुप मोहता
काव्यपाठ:
नूपुर अशोक
Madhup Mohta
Email :
[email protected]
विषय:
रोशनी (4)
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रोशनी
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ख़ुशी से फूल गया है
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टहनियों पर ...
..
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प्रेमरंजन अनिमेष
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उसमें
..
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कभी ..
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..
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