अप्रतिम कविताएँ
ओ माँ बयार
सूरज को, कच्ची नींद से
जगाओ मत।
दूध-मुँहे बालक-सा
दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
किन्तु बालक तुम्हारा है,
ओ माँ बयार!
थपकियाँ दे-देकर सुला दो
इसे बादल उढ़ा दो
इस तरह रुलाओ मत।
सूरज को कच्ची नींद से
जगाओ मत।
- शान्ति मेहरोत्रा
संकलन रूपाम्बरा से

काव्यालय को प्राप्त: 15 Apr 2024. काव्यालय पर प्रकाशित: 6 Dec 2024

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कोई कथा अनकही न रहे
व्यथा कोई अनसुनी न रहे,
जिसने कहना-सुनना चाहा
वाणी उसकी मुखर हो रहे!

एक प्रश्न जो सोया भीतर
एक जश्न भी खोया भीतर,
जिसने उसे जगाना चाहा
..

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