अप्रतिम कविताएँ
लो दिन बीता, लो रात गई
लो दिन बीता, लो रात गई,
सूरज ढलकर पच्छिम पहुँचा,
डूबा, संध्या आई, छाई,
     सौ संध्या-सी वह संध्या थी,
क्यों उठते-उठते सोचा था,
     दिन में होगी कुछ बात नई।
लो दिन बीता, लो रात गई।

धीमे-धीमे तारे निकले,
धीरे-धीरे नभ में फैले,
     सौ रजनी-सी वह रजनी थी
क्यों संध्या को यह सोचा था,
     निशि में होगी कुछ बात नई।
लो दिन बीता, लो रात गई।

चिड़ियाँ चहकीं, कलियाँ महकी,
पूरब से फिर सूरज निकला,
     जैसे होती थी सुबह हुई,
क्यों सोते-सोते सोचा था,
     होगी प्रातः कुछ बात नई।
लो दिन बीता, लो रात गई,
- हरिवंशराय बच्चन
Ref: Sopaan
Pub: B.P.Thakur
Leader Press, Allahabad

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इस महीने :
'या देवी...'
उपमा ऋचा


1
सृष्टि की अतल आंखों में
फिर उतरा है शक्ति का अनंत राग
धूम्र गंध के आवक स्वप्न रचती
फिर लौट आई है देवी
रंग और ध्वनि का निरंजन नाद बनकर
लेकिन अभी टूटी नहीं है धरती की नींद
इसलिए जागेगी देवी अहोरात्र...

2
पूरब में शुरू होते ही
दिन का अनुष्ठान
जाग उठी हैं सैकड़ों देवियाँ
एक-साथ
ये देवियाँ जानती हैं कि
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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