अप्रतिम कविताएँ
लड़कियाँ
कहाँ चली जाती हैं
हँसती खिलखिलाती
चहकती महकती
कभी चंचल नदिया
तो कभी ठहरे तालाब सी लड़कियाँ

क्यों चुप हो जाती हैं
गज़ल सी कहती
नग़मों में बहती
सीधे दिल में उतरती
आदाब सी लड़कियाँ

क्यों उदास हो जाती हैं
सपनों को बुनती
खुशियों को चुनती
आज में अपने कल को ढूंढती
बेताब सी लड़कियाँ

कल दिखी थी, आज नहीं दिखती
पंख तो खोले थे, परवाज़ नहीं दिखती
कहाँ भेज दी जाती हैं
उड़ने को आतुर
सुरख़ाब सी लड़कियाँ
- सुदर्शन शर्मा
Sudarshan Sharma
Email: [email protected]
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विषय:
स्त्री (17)
समाज (30)

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 नित्या
 लड़कियाँ
इस महीने :
'एक आशीर्वाद'
दुष्यन्त कुमार


जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।
चाँद तारों सी अप्राप्य ऊँचाइयों के लिये
रूठना मचलना सीखें।
हँसें
मुस्कुराऐं
..

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इस महीने :
'तोंद'
प्रदीप शुक्ला


कहते हैं सब लोग तोंद एक रोग बड़ा है
तोंद घटाएँ सभी चलन यह खूब चला है।
पर मानो यदि बात तोंद क्यों करनी कम है
सुख शान्ति सम्मान दायिनी तोंद में दम है।

औरों की क्या कहूं, मैं अपनी बात बताता
बचपन से ही रहा तोंद से सुखमय नाता।
जिससे भी की बात, अदब आँखों में पाया
नाम न लें गुरु, यार, मैं पंडित 'जी' कहलाया।

आज भी ऑफिस तक में तोंद से मान है मिलता
कितना भी हो बॉस शीर्ष, शुक्ला 'जी' कहता।
मान का यह
..

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छंद में लिखना - आसान तरकीब
भाग 5 गीतों की ओर

वाणी मुरारका
इस महीने :
'सीमा में संभावनाएँ'
चिराग जैन


आदेशों का दास नहीं है शाखा का आकार कभी,
गमले तक सीमित मत करना पौधे का संसार कभी।

जड़ के पाँव नहीं पसरे तो छाँव कहाँ से पाओगे?
जिस पर पंछी घर कर लें वो ठाँव कहाँ से लाओगे?
बालकनी में बंध पाया क्या, बरगद का ..

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