अप्रतिम कविताएँ
लड़कियाँ
कहाँ चली जाती हैं
हँसती खिलखिलाती
चहकती महकती
कभी चंचल नदिया
तो कभी ठहरे तालाब सी लड़कियाँ

क्यों चुप हो जाती हैं
गज़ल सी कहती
नग़मों में बहती
सीधे दिल में उतरती
आदाब सी लड़कियाँ

क्यों उदास हो जाती हैं
सपनों को बुनती
खुशियों को चुनती
आज में अपने कल को ढूंढती
बेताब सी लड़कियाँ

कल दिखी थी, आज नहीं दिखती
पंख तो खोले थे, परवाज़ नहीं दिखती
कहाँ भेज दी जाती हैं
उड़ने को आतुर
सुरख़ाब सी लड़कियाँ
- सुदर्शन शर्मा
Sudarshan Sharma
Email: [email protected]
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 नित्या
 लड़कियाँ
इस महीने :
'या देवी...'
उपमा ऋचा


1
सृष्टि की अतल आंखों में
फिर उतरा है शक्ति का अनंत राग
धूम्र गंध के आवक स्वप्न रचती
फिर लौट आई है देवी
रंग और ध्वनि का निरंजन नाद बनकर
लेकिन अभी टूटी नहीं है धरती की नींद
इसलिए जागेगी देवी अहोरात्र...

2
पूरब में शुरू होते ही
दिन का अनुष्ठान
जाग उठी हैं सैकड़ों देवियाँ
एक-साथ
ये देवियाँ जानती हैं कि
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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