अप्रतिम कविताएँ
कुछ प्रेम कविताएँ
1.
प्रेम कविता, कहानियाँ और फ़िल्में
जहाँ तक ले जा सकती हैं
मैं गया हूँ उसके पार
कई बार।
इक अजीब-सी बेचैनी होती है वहाँ
जी करता है थाम लूँ कोई चीज
कोई हाथ, कोई सहारा।
मैं टिक नहीं पाता वहाँ देर तक।।

सुनो,
अबसे तुम भी चला करो
मेरे साथ वहाँ।।

2.
मैंने भी लिखी है प्रेम कविता
कई बार।
हर बार,
शब्द मौन हो गए;
स्याही कागज़ तक तो गई
पर समा गई कागज़ में पूरा का पूरा,
नहीं दिखा उसे खुद का दिखना
प्रेम में ।
और, सब ने कह दिया
नहीं दिखी मेरी प्रेम कविता।।

सुनो,
तुम तो जानती हो न
नहीं दिखता है खुद का दिखना
प्रेम में।।

3.
फिर तो ठीक ही है कि
मैं ने नहीं लिखी कोई प्रेम कविता।
'मैं' लिख सकता है क्या प्रेम को?
नहीं न!
फिर कौन लिखे प्रेम?
- प्रदीप शुक्ला
विषय:
प्रेम (62)

काव्यालय को प्राप्त: 25 May 2025. काव्यालय पर प्रकाशित: 29 Aug 2025

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'तुम्हारे साथ रहकर'
सर्वेश्वरदयाल सक्सेना


तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है
कि दिशाएँ पास आ गयी हैं,
हर रास्ता छोटा हो गया है,
दुनिया सिमटकर
एक आँगन-सी बन गयी है
जो खचाखच भरा है,
कहीं भी एकान्त नहीं
न बाहर, न भीतर।

हर चीज़ का आकार घट गया है,
पेड़ इतने
..

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कभी-कभी जीवन कोई घोषणा नहीं करता—
वह बस बहता है,
जैसे कोई पुराना राग,
धीरे-धीरे आत्मा में उतरता हुआ,
बिना शोर, बिना आग्रह।

हमारे साथ के तीस वर्ष पूर्ण हुए हैं।
कभी लगता है हमने समय को जिया,
कभी लगता है समय ने हमें तराशा।
यह साथ केवल वर्ष नहीं थे—
यह दो आत्माओं का मौन संवाद था,
जो शब्दों से परे,
पर भावों से भरपूर रहा।

जब हमने साथ चलना शुरू किया,
तुम थे स्वप्नद्रष्टा—
शब्दों के जादूगर,
भविष्य के रंगीन रेखाचित्रों में डूबे हुए।
और मैं…
मैं थी वह ज़मीन
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
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तुम तो पहले ऐसे न थे
रात बिरात आओगे
देर सवेर आओगे
हम नींद में रहें
आँख ना खुले
तो रूठ जाओगे...

स्वप्न में आओगे
दिवास्वप्न दिखाओगे
हम कलम उठाएँगे
तो छिप जाओगे...

बेचैनियों का कभी
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें...
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