अप्रतिम कविताएँ
कुछ प्रेम कविताएँ
1.
प्रेम कविता, कहानियाँ और फ़िल्में
जहाँ तक ले जा सकती हैं
मैं गया हूँ उसके पार
कई बार।
इक अजीब-सी बेचैनी होती है वहाँ
जी करता है थाम लूँ कोई चीज
कोई हाथ, कोई सहारा।
मैं टिक नहीं पाता वहाँ देर तक।।

सुनो,
अबसे तुम भी चला करो
मेरे साथ वहाँ।।

2.
मैंने भी लिखी है प्रेम कविता
कई बार।
हर बार,
शब्द मौन हो गए;
स्याही कागज़ तक तो गई
पर समा गई कागज़ में पूरा का पूरा,
नहीं दिखा उसे खुद का दिखना
प्रेम में ।
और, सब ने कह दिया
नहीं दिखी मेरी प्रेम कविता।।

सुनो,
तुम तो जानती हो न
नहीं दिखता है खुद का दिखना
प्रेम में।।

3.
फिर तो ठीक ही है कि
मैं ने नहीं लिखी कोई प्रेम कविता।
'मैं' लिख सकता है क्या प्रेम को?
नहीं न!
फिर कौन लिखे प्रेम?
- प्रदीप शुक्ला
विषय:
प्रेम (61)

काव्यालय को प्राप्त: 25 May 2025. काव्यालय पर प्रकाशित: 29 Aug 2025

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'स्वतंत्रता का दीपक'
गोपालसिंह नेपाली


घोर अंधकार हो, चल रही बयार हो,
आज द्वार द्वार पर यह दिया बुझे नहीं।
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है।

शक्ति का दिया हुआ, शक्ति को दिया हुआ,
भक्ति से दिया हुआ, यह स्वतंत्रता-दिया,
रुक रही न नाव हो, ज़ोर का बहाव हो,
आज गंगधार पर यह दिया बुझे नहीं!
यह स्वदेश का दिया प्राण के समान है!
..

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'युद्ध की विभीषिका'
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युद्ध अगर अनिवार्य है सोचो समरांगण का क्या होगा?
ऐसे ही चलता रहा समर तो नई फसल का क्या होगा?

हर ओर धुएँ के बादल हैं, हर ओर आग ये फैली है।
बचपन की आँखें भयाक्रान्त, खण्डहर घर, धरती मैली है।
छाया नभ में काला पतझड़, खो गया कहाँ नीला मंजर?
झरनों का गाना था कल तक, पर आज मौत की रैली है।

किलकारी भरते ..

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