कनुप्रिया मुखरित हुई

धर्मवीर भारती की कालजयी रचना "कनुप्रिया" पर आधारित श्रृंखला

'Kanupriya Mukhrit Huee' here

धर्मवीर भारती की कृति 'कनुप्रिया', कनु अर्थात कृष्ण की प्रिया राधा की अनुभूतियों की गाथा है। ऐसा लगता है जैसे धर्मवीर भारती ने नारी के अंतर्मन की एक एक परत खोल कर देखी है। इस रचना में नारी के मन की संवेदनाओं और प्यार के नैसर्गिक सौन्दर्य का अप्रतिम चित्रण है।

कनुप्रिया का प्रथम संस्करण सन 1959 में प्रकाशित हुआ था। तब से इसके दस से अधिक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। इस कालजयी खण्ड काव्य के पाँच अंश, जो काव्यालय में उपलब्ध हैं, हम पाँच विभिन्न आवाज़ों में इस श्रृंखला में प्रस्तुत है। ये अंश और आवाज़ें नारी की पाँच विभिन्न अनुभूतियों के रूपक हैं। हमारे साथ आप भी अनुभव करेंगे कि इन आवाज़ों में स्वयं कनुप्रिया मुखरित हुई।

अनुभूतियों की माला
यदि धर्मवीर भारती की रचना कनुप्रिया का वर्गीकरण करना ही हो तो इसे एक खंडकाव्य कह सकते हैं, किन्तु इस पर किसी भी काव्य- वर्ग की परिभाषा पूरे तौर पर लागू कर पाना कठिन है। खंड काव्य या महाकाव्य में एक कथानक होना आवश्यक है। कथानक जो घटना क्रम पर आधारित हो अर्थात एक घटना के बाद उसके परिणाम स्वरुप दूसरी घटना का होना। भौतिक शास्त्र में इसे causality कहते हैं अर्थात पहले कारण फिर परिणाम। हम सब इसी तर्क के आधार पर सोचते हैं, सोच सकते हैं क्योंकि यह हमारी तर्क विद्या की सीमा है। किन्तु जीवन में एक आयाम ऐसा भी हो सकता है जब सब कुछ एक भौतिक तार्किक क्रम से नहीं होता। एक आयाम यह भी है जब परिणाम और कारण एक दूसरे से गुंथे हुए होते हैं, एक ही अनुभूति के दो पहलू होते हैं। उनके ऊपर पहले और बाद में घटित होने का बंधन नहीं होता । प्रणय एक ऐसा ही आयाम है जिसे धर्मवीर भारती ने एक घटनाक्रम के रूप में प्रस्तुत किया है। यह घटनाक्रम भौतिक घटनाओं का नहीं, केवल अनुभूतियों का है। यह खंडकाव्य मानवीय अनुभूतियों की एक ऐसी अभिव्यक्ति है जिससे माधुर्य की नैसर्गिक धारा प्रवाहित होती है।

नारी के अनेक रूप, राधा की पीड़ा
राधा और कृष्ण की प्रणय गाथा शाश्वत है। इसका कोई आरम्भ या अंत नहीं है। इस पर असंख्य रचनाएँ लिखी जा चुकी हैं और लिखी जाएंगी। उनमें कौन से अधिक अच्छी है, यह प्रश्न ही असंगत है। प्रत्येक रचना अपने रचयिता की भावनाओं का दर्पण होती है। भारती की कनुप्रिया भी अपने कवि की कोमलतम भावनाओं का एक सजीव चित्र है। इसमें राधा केवल एक समूर्त नारी नहीं, किन्तु नारी के अनेक रूपों का एक समन्वय है। इसमें राधा की भावनाओं का मार्मिक चित्रण है। राधा शक्ति है, पर अपनी मानवीय चेतना में अपनी सीमाओं से परिचित है। उसे पता है कि कृष्ण भगवान हैं, और वह एक पार्थिव शरीर। कृष्ण अपने कर्तव्य पालन के लिए धरती पर अवतरित हुए हैं। अपना कर्तव्य समाप्त करके उन्हें विष्णुलोक वापस जाना ही होगा जहाँ राधा की पहुँच नहीं है। राधा के मन में यही एक प्रश्न है जो उसे सदैव कचोटता रहता है। नारी और नारायण के बीच की यह दीवाल क्या टूट सकती है?

राधा की चेतना, कृष्ण का अधूरापन
राधा की पीड़ा का एक और पहलू भी है। जैसे नारायण के संपर्क में आकर नारी अपने मानवीय धरातल से उठकर नारायण के स्तर पर पहुँच सकती है, वैसे ही नारायण को भी नारी के संपर्क में आकर मानवीय भावनाओं के सौन्दर्य और कोमलता का वरदान मिल सकता है। जब भगवान स्वयं धरती पर मनुष्य बन जाते हैं तो उन्हें मनुष्य शरीर के सुख का मूल्य भी चुकाना पड़ता है। उन्हें भी मानवीय संघर्षों की यातनायें और विरह की पीड़ा सहन करनी पड़ती हैं, और सफलता और असफलता की लहरों में डूबना उतराना पड़ता है। निराशा और वेदना की घड़ियों में कनुप्रिया ही उन्हें सहारा दे सकती है। जहाँ नारी को नारायण की आवश्यकता है, वहीं नारायण को नारी की। कृष्ण कितने भी वीतराग हों, कितने भी निर्लिप्त हों , किन्तु फिर भी 'सम्पूर्ण के लोभी' हैं। ऐसी सम्पूर्णता जो नारी और नारायण के समागम से ही उपलब्ध हो सकती है। वास्तव में राधा तो स्वयं शक्ति है। उसी की चेतना में से कृष्ण का प्रादुर्भाव हुआ है। उसी की चेतना में कृष्ण की रास लीला हुई और फिर चिर मिलन और चिर विरह की आध्यात्मिक गाथा बन गई - कनुप्रिया।

कविता की शक्ति, पाठक का अधिकार
कविता या किसी भी कलाकृति में न प्रश्न होते हैं और न प्रश्नों का उत्तर। कविता की महानता यह है कि उसमें केवल अभिव्यक्तियाँ होती हैं कोई एक पारिभाषित सन्देश नहीं होता। प्रत्येक पाठक/पाठिका को अधिकार है कि किसी भी कविता को अपने ढंग से, अपने स्तर पर, अपनी भावनाओं के अनुकूल आत्मसात करें। जैसे सूरदास के विषय में कहते हैं कि नेत्र हीन होते हुए भी उन्होंने बाल जीवन के आँगन का कोना कोना देखा है, वैसे ही कह सकते है कि पुरुष होकर भी धर्मवीर भारती ने नारी के अंतर्मन की एक एक परत खोल कर देखी है। कनुप्रिया में अभिव्यक्त ऐसी ही कुछ परतों का वर्णन और कुछ भावनाओं का चित्रण काव्यालय की इस प्रस्तुति में है।

इसे पाँच विभिन्न आवाज़ों में प्रस्तुत किया गया है जो नारी की पाँच विभिन्न अनुभूतियों के रूपक हैं। यह कहना कठिन ही नहीं असंभव भी है कि इन पाँच अनुभूतियों से राधा के सम्पूर्ण व्यक्तित्व की व्याख्या हो जाती है। किसी भी व्यक्तित्व को पूरी तरह से परिभाषित करने का प्रयास ही निरर्थक है। कनुप्रिया के रूप में नारी का व्यक्तित्व परिभाषा से परे स्वयं अपनी परिभाषा है - यही तथ्यहीनता इस कविता का तथ्य है। ये पाँच मधुरिम आवाज़ें कनुप्रिया के व्यक्तित्व की परिभाषा नहीं, नारी की पाँच अभिव्यक्तियाँ हैं, जो इन आवाज़ों में सजीव हो उठती हैं।

हमारे साथ इस सुन्दरतम काव्य के पठन और श्रवण का आनंद लें। काव्यालय की प्रस्तुति "कनुप्रिया मुखरित हुई"।

प्राक्कथन, प्रकाशित 24 मार्च 2017

1

वह सुख जो हमें बहुत प्रिय हो, जब हमारे सामने प्रस्तुत हो जाए तो कभी कभी उसे ग्रहण करने में मन घबराता है न? नारी का ही नहीं, मानव मन का नैसर्गिक स्वभाव है यह। "सुख के क्षण में घिर आने वाली निर्व्याख्या उदासी" - इस सूक्ष्म अनुभूति को कितनी कोमलता के साथ शब्दों में पिरोया है धर्मवीर भारती ने। हर पंक्ति एक दिग्गज चित्रकार की घुमावदार रेखा के समान।

आम्र बौर का गीत
उस दिन तुम उस बौर लदे आम की
झुकी डालियों से टिके कितनी देर मुझे वंशी से टेरते रहे...
कवि: धर्मवीर भारती
कण्ठ: कनुप्रिया मोहन्ती
पृथक: अलग; गोपन: दुराव, अपने में सिकुड़ना; अभिभूत: overwhelmed (वश में लाया हुआ); संशय: शंका; महावर: पाँव में लगाने का लाल रंग (आलता)

प्रकाशित 7 अप्रैल 2017

2

विप्रलब्धा अर्थात धोखा खाई हुई। कृष्ण द्वारका चले गए हैं। और उनकी प्रिया? उसका संसार? "बुझी हुई राख, टूटे हुए गीत, डूबे हुए चाँद सा" -
बौखलाई तिलमिलाती पीड़ा जब कनुप्रिया का अस्तित्व ही उसके लिए प्रश्न बन गया।
रस चाहे जो भी हो, ऐसी तीव्र पीड़ा कि वह क्रोध तक पहुँचती प्रतीत हो तब भी, सार्थक कविता उस रस को भी सौन्दर्य से सींच कर अभिव्यक्त करती है। इसी के आधार पर किसी भी रस की कविता पाठक को निस्तब्ध करने का सामार्थ्य रखती है। धर्मवीर भारती ने विप्रलब्धा में इसका बखूबी उदाहरण दिया है।

विप्रलब्धा
बुझी हुई राख, टूटे हुए गीत, डूबे हुए चाँद,
रीते हुए पात्र, बीते हुए क्षण-सा - मेरा यह जिस्म...
कवि: धर्मवीर भारती
कण्ठ: अर्चना गुप्ता
चित्र आभार: अम्बिका झुनझुनवाला
विप्रलब्धा: धोखा खाई हुई; रीते हुए पात्र: खाली हुआ बरतन; वेग: तेज़ी, रफ़्तार; आश्लेष: आलिंगन; म्लान: मुर्झाया; गुंजलक: साँप का घेरा; आवर्त: लपेट; अलकों: बाल; प्रत्यंचा: धनुष का डोरी

प्रकाशित 14 अप्रैल 2017

3

भाव आकार बदलते हैं। अब पीड़ा कनुप्रिया का इतना स्वाभाविक अंग बन गई है, जैसे उसकी साँसेँ। अब वह अपने कनु को जैसे बस एक पत्र लिख रही है - जैसे कोई मित्र को लिखता है - इन दिनों यहाँ ऐसा है। प्रश्न भी उठते हैं मन में तो उन्हें बस कह देती है, बिना जवाब की माँग के -

उसी आम के नीचे
जहाँ खड़े हो कर तुम ने मुझे बलाया था
अब भी मुझे आ कर बड़ी शान्ति मिलती है
न,
मैं कुछ सोचती नहीं
कुछ याद भी नहीं करती
कवि: धर्मवीर भारती
कण्ठ: पारुल 'पंखुरी' गुप्ता
तन्मय: लीन, डूबा हुआ; वक्ष: छाती; यन्त्र: मशीन; कपोलों: गाल; छौना: बच्चा

प्रकाशित 21 अप्रैल 2017

4

कृष्ण कितने भी वीतराग हों, कितने भी निर्लिप्त हों , किन्तु फिर भी 'सम्पूर्ण के लोभी' हैं। ऐसी सम्पूर्णता जो नारी और नारायण के समागम से ही उपलब्ध हो सकती है। निराशा और वेदना की घड़ियों में मन उनकी प्रिया की ओर ही मुड़ता है।
आखिरकार धर्म-अधर्म-सही-गलत सभी तर्क छोड़ प्रेम, राधा, समर्पण की ओर ही मुड़ना होगा।

समुद्र-स्वप्न
लहरें नियन्त्रणहीन होती जा रही हैं
और तुम तट पर बाँह उठा-उठा कर कुछ कहे जा रहे हो
पर तुम्हारी कोई नहीं सुनता, कोई नहीं सुनता!
कवि: धर्मवीर भारती
कण्ठ: वाणी मुरारका
शेषशय्या: बिस्तर; क्रीड़ा : खेल; अवगुण्ठन: घूँघट; विक्षुब्ध: परेशान; शिरस्त्राण: हेलमेट; सिवार: पानी के भीतर होनेवाली घास, seaweed; अभिप्राय: उद्देश्य; वटपत्र: बरगद का पत्ता; छौना: बच्चा; गाण्डीव: अर्जुन का धनुष; सिवार-सा उतरा: जल के घास सा तैरता; तटस्थ: निरपेक्ष; जीर्णवसन: फटा कपड़ा

प्रकाशित 28 अप्रैल 2017

5

समापन
बिना मेरे कोई भी अर्थ कैसे निकल पाता
तुम्हारे इतिहास का
शब्द, शब्द, शब्द ...
राधा के बिना
सब
रक्त के प्यासे
अर्थहीन शब्द!

यह सँदेश है कनुप्रिया का मानवता को - देवत्व के साथ मानवता की अनिवार्यता।
अब कनुप्रिया की भावनाओं की गाथा प्रणय के उस आयाम में पहुँच गई है जहाँ अतीत, भविष्य, विरह, मिलन सभी वर्तमान बन गए हैं - एक शाश्वत वर्तमान। भावनाओं के आवेग के परे उसकी आवाज़ में आत्म-विश्वास है, ठहराव है। "जन्मान्तरों की अनन्त पगडण्डी के कठिनतम मोड़ पर खड़ी हो" ऐसा लगता है उसकी वाणी अन्तरिक्ष से ही आ रही है। वास्तव में राधा तो स्वयं शक्ति है। उसी की चेतना में कृष्ण का प्रादुर्भाव हुआ है। उसी की चेतना में कृष्ण की रास लीला हुई और चिर मिलन और चिर विरह की आध्यात्मिक गाथा बन गई - कनुप्रिया।

कवि: धर्मवीर भारती
कण्ठ: रुचि वार्ष्णेय

प्रकाशित 5 मई 2017

मिलिए कलाकारों से

कनुप्रिया मोहन्ती
इस ब्रह्माण्ड में कनुप्रिया मन से कवि और व्यवसाय से सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। यदि उनके इस भौतिक संसार का कोई समानांतर संसार होता तो शायद वह पत्रकार होतीं, या अन्तरिक्ष अन्वेषक। अपनी दिन भर की नौकरी, पति, तीन बच्चे और दो पालतू कुत्तों के साथ वक्त बिताने के बाद जो चन्द घड़ियाँ उन्हें मिलती हैं, वह पढ़ने में, विशेषरूप से विज्ञान गल्प (science fiction) पढ़ने में व्ययतीत करती हैं। बचपन में वह कविता लेखन और कवितापाठ करती थीं। अब वह अपनी रचनात्मक प्रवत्ति की संतुष्टि अपने ऑफिस की पत्रिका का सम्पादन और लेखन से प्राप्त करती हैं। प्रकृति, और शब्द की शक्ति उन्हे विशेष रूप से मुग्ध करती है। कनुप्रिया के मतानुसार शिक्षा, सौहार्द्य और करुणा से विश्व की सारी समस्याओं का निवारण हो सकता है।

"कनुप्रिया" को अपनी आवाज़ देने का अनुभव
... The recording itself took countless iterations. After several failed attempts the recording finally came together for me. Like divers in the ocean who give themselves up to the wonders around them only when they get past the mechanics of their diving gear, at some point I made my way into a zone in which nothing else existed except for the sheer lyrical beauty of the poetry... पूरा अनुभव पढ़ें
अर्चना गुप्ता
अर्चना गुप्ता व्यवसाय से सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। इन्हें हिन्दी/उर्दू काव्य पढ़ने-लिखने, और पुराने हिन्दी फ़िल्मी गीत सुनने का शौक़ है और अपने पति, दो पुत्रों, घर और काम में बँटे व्यस्त जीवन से कुछ क्षण अपनी इन रुचियों के लिए रोज़ चुरा ही लेती हैं । वैसे गद्य और पद्य दोनों ही पढ़ने में इन्हें रुचि है परंतु गत कुछ वर्षों से सभी भाषाओं में काव्य के प्रति इनका रुझान अधिक रहा है। हिंदी में श्री हरिवंशराय बच्चन और श्रीमती महादेवी वर्मा, और उर्दू में मिर्ज़ा ग़ालिब, फ़ैज़ अहमद 'फैज़' और कैफ़ी आज़मी इनके सर्वप्रिय कवि हैं। इनके अतिरिक्त, अमृता प्रीतम की रचनाओं के प्रति ये विशेष आसक्ति रखती हैं। लेखन-पाठन के अतिरिक्त, अपने बेटों को बेसबॉल खेलते देखना, देश-विदेश का पर्यटन करना, फिल्में देखना, खाना बनाना और स्क्रैप बुकिंग करना इनकी अन्य रुचियाँ हैं।



"कनुप्रिया" को अपनी आवाज़ देने का अनुभव

... I was immediately drawn to Vipralabdha. The pain, bewilderment, the underlying sense of betrayal and resulting anger all “spoke” to me.

... The feedback demanded introspection. Was I allowing my own reactions to Radha’s situation overpower the expression of Radha’s emotions in her characteristic style?

... My own interpretation still had stronger undertones of anger than desired by them. I simply saw the character as far more open and vocal with her soulmate – I guess more like a contemporary woman.

... getting into a character, thinking and reacting like it while removing all traces of one’s own thought process or natural reactions is much harder than it appears... पूरा अनुभव पढ़ें

पारुल गुप्ता 'पंखुरी'
पारुल गुप्ता ‘पंखुरी’ शामली, उ. प्र. में रहती हैं। उन्होंने गणित में स्नातक स्तर तक पढ़ाई कर कंप्यूटर कोर्स और इंटीरियर डिजाइनिंग का कोर्स किया है। शादी ब्याह के अवसरों पर और विभिन्न प्रकार के अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए प्रोफेशनल तौर पर स्क्रिप्ट ऑनलाइन लिख कर देती हैं। लेखन की विभिन्न विधाओं में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करना उन्हें विशेष पसंद है। अखिल भारतीय काव्य प्रतियोगिता 2015 में उन्हें अपनी कविता “भूकंप” के लिए प्रथम पुरूस्कार मिल चुका है । पारुल काफ़ी समय से दिल्ली प्रेस से जुडी हुई हैं। सरिता, गृहशोभा आदि विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में उनकी कविताएं और कहानियां छप चुकी हैं । भजन गायन इन्हें बहुत भाता है ।



"कनुप्रिया" को अपनी आवाज़ देने का अनुभव

2015 में विनोद तिवारी सर का मेल आया कि काव्यालय का नया ऑडियो प्रोजेक्ट “कनुप्रिया” शुरू होने वाला है।

राधा और कृष्ण के जीवन के कुछ काव्यमयी अंश। पर यह राधा एक आम औरत के जैसे भाव, इच्छा, कुंठा, शिकायत, लज्जा, सब लिए हुए थी। मेरे हिस्से अंश “उसी आम के नीचे” आया।

... अब नवम्बर 2016 को मेरे भाई की शादी थी और इधर कनुप्रिया प्रोजेक्ट फिर हरकत में आ गया। राधा के भाव भी हों और उदासी भी, मुक्त कविता की तरह उसे बहना था और लय में बंधना भी था! तकनीकी (अनचाहे साउन्ड) की काफी दिक्कत थी।

... मैंने भी ठान रखा था जब तक करनी पड़ेगी करुँगी (हालंकि मेरे जैसे जॉइंट फॅमिली में बहुत डिफिकल्ट है रिकॉर्डिंग करना)। करवा चौथ वाले दिन मैंने फिर से रिकार्डिंग भेजी। सीधे फोन आया। उन्होंने कहा- “एक्सीलेंट पारुल! टू गुड! अगर मै तुम्हारे सामने होती तो स्टैंडिंग ओवेशन देती।” और उसी रात से मुझे फीवर हो गया, वो भी मलेरिया जो महीने भर तक पीछे पड़ा रहा। बहुत सही समय पे कनुप्रिया का काम पूरा कर दिया था मैंने ।

... और सभी कण्ठ कलाकार किसी फिल्म के हीरोइन के जैसे :-)। सच में सेलेब्रिटी के जैसे लगा था मुझे! अब बस पिक्चर रिलीज़ होने का इन्तजार है। पूरा अनुभव पढ़ें

वाणी मुरारका
वाणी मुरारका सॉफ्टवेयर रचक, लेखिका और चित्रकार हैं। उन्होंने सन 1997 में हिंदी कविता की वेबसाइट के रूप में काव्यालय का आरम्भ किया था। अब वह डॉ विनोद तिवारी के साथ काव्यालय का संचालन और सम्पादन करती हैं। उन्होंने एक मौलिक सॉफ़्टवेयर का निर्माण किया है - गीत गतिरूप । यह सॉफ्टवेयर काव्य शिल्प में सुधार और कविता के आकार को परिष्कृत करने में विशेष उपयोगी है । वाणी ने अपनी औपचारिक शिक्षा कम्प्यूटर विज्ञान में प्राप्त की। कोलकाता निवासी वाणी को विल्यिम ब्लेक की इन पंक्तियों में अपना जीवन-उद्देश्य प्रतिध्वनित होता लगता है -
To see the World in a grain of sand
And Heaven in a wild flower
Hold Infinity in the palm of your hand
And Eternity in an hour.



"कनुप्रिया" को अपनी आवाज़ देने का अनुभव

पोस्ट प्रोडक्शन के काम के दौरान मेरा सभी अंशों के साथ बहुत वक्त बीता। ऐसा लगता है जैसे सभी अंश और पूरी कृति कनुप्रिया हौले से संदेश दे रहे हैं...

... “समुद्र स्वप्न” अंश में: आखिरकार धर्म-अधर्म, सही-गलत के ज्ञान का दम्भ छोड़ प्रेम की ओर, राधा की ओर ही मुड़ना होगा।

... और अन्त में “शब्द शब्द शब्द, राधा के बिना सब अर्थहीन शब्द”: शायद संसार जो भेद-भाव और युद्ध से पीड़ित है, इसी वजह से पीड़ित है। क्योंकि स्त्रीवाची (feminine) गुणों को, राधा को, हम महत्व नहीं देते। ... कनुप्रिया समर्पित है पर अबला नहीं...

...
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रुचि वार्ष्णेय
रुचि का जन्म हिमालय की तलहटी में स्थित शैक्षिक नगरी रूड़की में हुआ, वहीं उनका बचपन बीता। युवाकाल में हिन्दी साहित्य पढ़ना और उनका मुखर पाठ करना उनके खास शौक थे। रुचि ने आई.आई.टी (रूड़की) से इंजीनियरिंग, जमशेदपुर से मैनेजमेन्ट और अमरीका के जॉन हॉपकिन्स विश्वविद्यालय से लोक स्वास्थ्य की डिग्री प्राप्त की। इन दिनों वह कैलिफ़ोर्निया, अमरीका में अपने पति और दो बच्चों के साथ रहती हैं और एक ग्लोबल स्वास्थ्य सेवा कंपनी में काम करती हैं। ’आशा फ़ॉर एजुकेशन’ के लिए कोष जुटाने में और ’परी’ और काव्यालय जैसे उद्यम में स्वयंसेविका के के रूप में योगदान देने में वह अपने अवकाश के समय का प्रयोग करती हैं। कण्ठ कलाकार बनकर हिन्दी साहित्य को और लोगों तक पहुँचाने में उन्हें खास रुचि है।



"कनुप्रिया" को अपनी आवाज़ देने का अनुभव
The process of reading the poetry multiple times, researching the interpretations, assimilating in the character, and practising recital in front of a mirror was as rewarding as the final recording. I got a satisfactory version after several attempts. It was a tall order to capture the right emotion, right pronunciation and the right diction of this great piece of poetry - a confident, defiant Radha speaking directly to her Krishna. I wanted to give it my best. Hope I did it justice.
विनोद तिवारी
डा. विनोद तिवारी भौतिक वैज्ञानिक हैं, और वाणी मुरारका के साथ काव्यालय के सह-सम्पादक। हरदोई, उत्तर प्रदेश के मूल निवासी डा. तिवारी आजकल कोलोराडो, अमरीका में रहते हैं। एक राष्ट्रीय वैज्ञानिक संस्थान में वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत हैं। अमरीका आने के पहले वह बिड़ला इंस्टीटूट पिलानी में प्राध्यापक और डीन थे। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से भौतिक विज्ञान में बीएस सी, एम.एस सी. और दिल्ली विश्विद्यालय से पी एच. डी. किया है। अपने शोध कार्य के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी प्राप्त हैं, खासकर प्राइड आफ इंडिया पुरस्कार, और लाइफ-टाइम-एचीवमेंट पुरस्कार।
हिन्दी काव्य लेखन और पठन में उन्हें विशेष रुचि है। विनोद एक उत्तम कवि हैं। बाल्यावस्था में ही उन्होंने अपने अध्यापक से सीखा कि कविता लिखना देवी सरस्वती की साधना है। कवि के लिए आवश्यक है कि कविता की पवित्रता का संम्मान करे।
संक्षेप में उनके व्यक्तित्व की परिभाषा है, "भौतिक विज्ञान पर अडिग आस्था, हिन्दी से अटूट अपनत्व, और काव्य में असीम रुचि।"


मिलिए कलाकारों से, प्रकाशित 31 मार्च 2017

चित्र आभार
राधा: मनीष वर्मा
'राधा' चित्रकार मनीष वर्मा की कृति है। नई दिल्ली के निवासी मनीष चित्रकार और मूर्तिकार हैं। उनको काव्यालय का आभार कि उन्होंने अपना चित्र इस प्रोजेक्ट के लिए उपयोग करने की अनुमति दी। आप उनकी और रचनाएँ यहाँ देख सकते हैं
Mango Flowers: ABC News, Australia
Longing: Ambika Jhunjhunwala
Ambika Jhunjhunwala lives in Bonn, Germany. She is an extremely talented artist, an avid painter. You can see more of her work on her Facebook page Burnt in Sienna. Kaavyaalaya is thankful to her that she gave us the permission to use her painting.
Pixabay.com
समुद्र स्वप्न के सारे चित्र, और समापन का वीडियो Pixabay.com से लिए गए हैं
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उत्तम तीन टिप्पणी लेखकों को उपहार।
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'काल का वार्षिक विलास'
नाथूराम शर्मा 'शंकर'


सविता के सब ओर मही माता चकराती है,
घूम-घूम दिन, रात, महीना वर्ष मनाती है,
कल्प लों अन्त न आता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन जाता है।

छोड़ छदन प्राचीन, नये दल वृक्षों ने धारे,
देख विनाश, विकाश, रूप, रूपक न्यारे-न्यारे,
दुरङ्गी चैत दिखाता है,
हा, इस अस्थिर काल-चक्र में जीवन
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इस महीने :
'ओ माँ बयार'
शान्ति मेहरोत्रा


सूरज को, कच्ची नींद से
जगाओ मत।
दूध-मुँहे बालक-सा
दिन भर झुंझलायेगा
मचलेगा, अलसायेगा
रो कर, चिल्ला कर,
घर सिर पर उठायेगा।
आदत बुरी है यह
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पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'आए दिन अलावों के'
इन्दिरा किसलय


आए दिन
जलते हुए, अलावों के !!

सलोनी सांझ
मखमली अंधेरा
थमा हुआ शोर
हर ओर
जी उठे दृश्य
मनोरम गांवों के !!

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