अप्रतिम कविताएँ
कच्ची-कच्ची धूप
सरसों के दामन से लिपटी
मन से कच्ची-कच्ची धूप ।।

बूढ़ा जाड़ा मोहपाश में
दिन को जकड़े रहता
काँख गुदगुदी करता सूरज
दिन किलकारी भरता

कभी फिसलती कभी सम्हलती
करती माथा-पच्ची धूप ।।

चारों ओर देख बदहाली
मन उसका घबराता
वर्षा जब करती मनमानी
सिर उसका चकराता

किरण-किरण को चुन-चुन देती
सबको, सच्ची -सच्ची धूप।।

आसमान की छत वालों को
चुटकी काट हँसाती
आएगा ऋतुराज जल्द ही
चिट्ठी बाँच सुनाती

खुशियों की चादर में बुनती
खुद को लच्छी-लच्छी धूप।।

सरसों के दामन से लिपटी
मन से कच्ची-कच्ची धूप ।।
- कल्पना मनोरमा
"कब तक सूरजमुखी बनें हम" कल्पना मनोरमा का नवगीत संग्रह है। इनके गीत और लघुकथाएँ कई साझा संकलनों में भी शामिल हो चुके है। "कस्तूरिया" इनका अपना ब्लॉग है।
विषय:
प्रकृति (41)
सूरज धूप (8)

काव्यालय को प्राप्त: 8 Jan 2022. काव्यालय पर प्रकाशित: 14 Jan 2022

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 कच्ची-कच्ची धूप
 दिसंबर की डाल पर
इस महीने :
'हमारी सहयात्रा'
ज्योत्सना मिश्रा


कभी-कभी जीवन कोई घोषणा नहीं करता—
वह बस बहता है,
जैसे कोई पुराना राग,
धीरे-धीरे आत्मा में उतरता हुआ,
बिना शोर, बिना आग्रह।

हमारे साथ के तीस वर्ष पूर्ण हुए हैं।
कभी लगता है हमने समय को जिया,
कभी लगता है समय ने हमें तराशा।
यह साथ केवल वर्ष नहीं थे—
यह दो आत्माओं का मौन संवाद था,
जो शब्दों से परे,
पर भावों से भरपूर रहा।

जब हमने साथ चलना शुरू किया,
तुम थे स्वप्नद्रष्टा—
शब्दों के जादूगर,
भविष्य के रंगीन रेखाचित्रों में डूबे हुए।
और मैं…
मैं थी वह ज़मीन
..

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इस महीने :
'तुम तो पहले ऐसे ना थे'
सत्या मिश्रा


तुम तो पहले ऐसे न थे
रात बिरात आओगे
देर सवेर आओगे
हम नींद में रहें
आँख ना खुले
तो रूठ जाओगे...

स्वप्न में आओगे
दिवास्वप्न दिखाओगे
हम कलम उठाएँगे
तो छिप जाओगे...

बेचैनियों का कभी
..

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इस महीने :
'कुछ प्रेम कविताएँ'
प्रदीप शुक्ला


1.
प्रेम कविता, कहानियाँ और फ़िल्में
जहाँ तक ले जा सकती हैं
मैं गया हूँ उसके पार
कई बार।
इक अजीब-सी बेचैनी होती है वहाँ
जी करता है थाम लूँ कोई चीज
कोई हाथ, कोई सहारा।
मैं टिक नहीं पाता वहाँ देर तक।।

सुनो,
अबसे
..

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