अप्रतिम कविताएँ
दिसंबर की डाल पर
दिसंबर की डाल पर खिलकर
चुपचाप मुरझा चुके हैं
ग्यारह फूल

मधुमक्खियाँ आईं
खेले भँवरे भी उनकी गोद में,
कितना लूटा किसने
नहीं जानते
बीत चुके ग्यारह फूल

बारहवाँ फूल खिला है संकोच में
वह जानता है
उन फूलों के अवदान को
अपने प्रति

हवाएँ नाच-नाच कर सोख रही हैं
फूल का गीलापन,
फिर भी बाकी है मुस्कान फूल में
जैसे डाल पर सोई चिड़िया के परों में
बाकी बचा रहता है
उड़ान के साथ
थोड़ा-सा आसमान भी।
- कल्पना मनोरमा
अवदान : बल
"कब तक सूरजमुखी बनें हम" कल्पना मनोरमा का नवगीत संग्रह है। इनके गीत और लघुकथाएँ कई साझा संकलनों में भी शामिल हो चुके है। "कस्तूरिया" इनका अपना ब्लॉग है।

काव्यालय को प्राप्त: 8 Dec 2021. काव्यालय पर प्रकाशित: 17 Dec 2021

***
सहयोग दें
विज्ञापनों के विकर्षण से मुक्त, काव्य के सौन्दर्य और सुकून का शान्तिदायक घर... काव्यालय ऐसा बना रहे, इसके लिए सहयोग दे।

₹ 500
₹ 250
अन्य राशि
कल्पना मनोरमा
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ

 कच्ची-कच्ची धूप
 दिसंबर की डाल पर
इस महीने :
'अमरत्व'
क्लेर हार्नर


कब्र पे मेरी बहा ना आँसू
हूँ वहाँ नहीं मैं, सोई ना हूँ।

झोंके हजारों हवाओं की मैं
चमक हीरों-सी हिमकणों की मैं
शरद की गिरती फुहारों में हूँ
फसलों पर पड़ती...
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
संग्रह से कोई भी रचना | काव्य विभाग: शिलाधार युगवाणी नव-कुसुम काव्य-सेतु | प्रतिध्वनि | काव्य लेख
सम्पर्क करें | हमारा परिचय
सहयोग दें

a  MANASKRITI  website