अप्रतिम कविताएँ
दिसंबर की डाल पर
दिसंबर की डाल पर खिलकर
चुपचाप मुरझा चुके हैं
ग्यारह फूल

मधुमक्खियाँ आईं
खेले भँवरे भी उनकी गोद में,
कितना लूटा किसने
नहीं जानते
बीत चुके ग्यारह फूल

बारहवाँ फूल खिला है संकोच में
वह जानता है
उन फूलों के अवदान को
अपने प्रति

हवाएँ नाच-नाच कर सोख रही हैं
फूल का गीलापन,
फिर भी बाकी है मुस्कान फूल में
जैसे डाल पर सोई चिड़िया के परों में
बाकी बचा रहता है
उड़ान के साथ
थोड़ा-सा आसमान भी।
- कल्पना मनोरमा
अवदान : बल
"कब तक सूरजमुखी बनें हम" कल्पना मनोरमा का नवगीत संग्रह है। इनके गीत और लघुकथाएँ कई साझा संकलनों में भी शामिल हो चुके है। "कस्तूरिया" इनका अपना ब्लॉग है।

काव्यालय को प्राप्त: 8 Dec 2021. काव्यालय पर प्रकाशित: 17 Dec 2021

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भाग 3 खास विषयों पर लिखना

वाणी मुरारका
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'कौन तुम'
डा. महेन्द्र भटनागर


कौन तुम अरुणिम उषा-सी मन-गगन पर छा गयी हो!

              लोक धूमिल रँग दिया अनुराग से,
              मौन जीवन भर दिया मधु राग से,
              दे दिया संसार सोने का सहज
              जो मिला करता बड़े ही भाग से,
कौन तुम मधुमास-सी अमराइयाँ महका गयी हो!

             वीथियाँ सूने हृदय की ..

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विकल होकर नित्य चंचल,
खोजती जब नींद के पल,
चेतना थक-सी रही तब,
मैं मलय की वात रे मन!

चिर-विषाद-विलीन मन की,
इस व्यथा के तिमिर-वन की;
..

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