अप्रतिम कविताएँ

जीवन की करो गिनती
इससे पहले कि अँधेरा पोत दे काला रंग
सफेद रोशनी पर
फैला जो है उजास
उसकी बातें करो
अँधेरे की बूँद को समुद्र मत बनाओ

इससे पहले कि मृत्यु अपने को बदल दे शोर में
गीत गाओ, सुनाओ
जीवन की रागिनी गुनगुना रही है
श्रवण के सारे द्वार खोलो
कैनवास भरा है सुर से, संगीत से
मौत के छीटों को बड़ा मत बनाओ

विषाद का आनन्द लेने वाले
जिजीविषा पर कर दें हमला
इससे पहले
उलट दो गणित को
जीवन की करो गिनती
रिक्ति को सम्पूर्ण पर मत बिठाओ।
- प्रकाश देवकुलिश
काव्यपाठ: प्रकाश देवकुलिश

काव्यालय को प्राप्त: 14 Oct 2022. काव्यालय पर प्रकाशित: 23 Dec 2022

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 जीवन की करो गिनती
 दरख़्त-सी कविता
 प्रणाम
 वो हवा वहीं ठहरी है
इस महीने :
'पुकार'
अनिता निहलानी


कोई कथा अनकही न रहे
व्यथा कोई अनसुनी न रहे,
जिसने कहना-सुनना चाहा
वाणी उसकी मुखर हो रहे!

एक प्रश्न जो सोया भीतर
एक जश्न भी खोया भीतर,
जिसने उसे जगाना चाहा
..

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