अप्रतिम कविताएँ

जीवन की करो गिनती
इससे पहले कि अँधेरा पोत दे काला रंग
सफेद रोशनी पर
फैला जो है उजास
उसकी बातें करो
अँधेरे की बूँद को समुद्र मत बनाओ

इससे पहले कि मृत्यु अपने को बदल दे शोर में
गीत गाओ, सुनाओ
जीवन की रागिनी गुनगुना रही है
श्रवण के सारे द्वार खोलो
कैनवास भरा है सुर से, संगीत से
मौत के छीटों को बड़ा मत बनाओ

विषाद का आनन्द लेने वाले
जिजीविषा पर कर दें हमला
इससे पहले
उलट दो गणित को
जीवन की करो गिनती
रिक्ति को सम्पूर्ण पर मत बिठाओ।
- प्रकाश देवकुलिश
काव्यपाठ: प्रकाश देवकुलिश
विषय:
जीवन (37)
प्रेम (60)
प्रेरणा (19)
अध्यात्म दर्शन (34)

काव्यालय को प्राप्त: 14 Oct 2022. काव्यालय पर प्रकाशित: 23 Dec 2022

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 जीवन की करो गिनती
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 प्रणाम
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इस महीने :
'छाता '
प्रेमरंजन अनिमेष


जिनके सिर ढँकने के लिए
छतें होती हैं
वही रखते हैं छाते

हर बार सोचता हूँ
एक छत का जुगाड़ करुँगा
और लूँगा एक छाता

इस शहर के लोगों के पास
जो छाता है
उसमें

..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'एक मनःस्थिति '
शान्ति मेहरोत्रा


कभी-कभी लगता है
जैसे घर की पक्की छत, दीवारें, चौखटें
मेरी गरम साँसों से पिघल कर
मोम-सी बह गई हैं।

केवल ये खिड़कियाँ-दरवाजे जैसे
कभी ..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
इस महीने :
'खिलौने की चाबी'
नूपुर अशोक


इतनी बार भरी गई है
दुःख, तकलीफ और त्याग की चाबी
कि माँ बन चुकी है एक खिलौना
घूम रही है गोल-गोल
..

पूरी प्रस्तुति यहाँ पढें और सुनें...
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